कक्षा 10 राजनीतिक विज्ञान अध्याय 1: सत्ता की साझेदारी । Class 10 Political Science Chapter 1 Notes in hindi Pdf

आज की इस पोस्ट में हम कक्षा 10 के राजनीतिक विज्ञान के अध्याय 1 सत्ता की साझेदारी को लेकर आए हैं। इस पोस्ट में कक्षा 10 राजनीतिक विज्ञान अध्याय 1: सत्ता की साझेदारी नोट्स (Class 10 Political Science Chapter 1 Notes) दिए गए हैं जो आप के एग्जाम के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। 

कक्षा 10 राजनीतिक विज्ञान अध्याय 1: सत्ता की साझेदारी । Class 10 Political Science Chapter 1 Notes in hindi Pdf

Class 10 Political Science Chapter 1 Notes

सत्ता की साझेदारी एक ऐसी शासन व्यवस्था है जहां समाज के सभी समूह और समुदायों को भागीदारी मिलती है। इस साझेदारी को लोकतंत्र का मूलमंत्र माना जाता है। लोकतंत्रिक सरकार में हर नागरिक को भी हिस्सा मिलता है, जो उसके सहभाग के माध्यम से होता है। लोकतंत्रिक शासन व्यवस्था में नागरिकों को सरकार से सलाह लेने का अधिकार होता है।

जब कोई शासन व्यवस्था हर सामाजिक समूह और समुदाय को सरकार में भागीदारी देती है, तो उसे सत्ता की साझेदारी कहा जाता है।

सत्ता की साझेदारी से लोकतंत्र को अपना मूलमंत्र मिलता है। लोकतंत्रिक सरकार में हर नागरिक का हिस्सा होता है। यह हिस्सा उसकी भागीदारी के माध्यम से होता है।

इस प्रकार की शासन व्यवस्था में नागरिकों को सरकार के तरीकों के बारे में सलाह लेने का अधिकार होता है।

सत्ता की साझेदारी क्यों जरूरी है?

सत्ता की साझेदारी कई कारणों से जरूरी है। यहां कुछ युक्तिपरक तर्क हैं:

1. विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच टकराव का अंदेशा कम होता है: साझेदारी शासन में, विभिन्न समाजिक समूहों को समाहित करके निर्णय लेने का मौका मिलता है। इससे समाज में टकराव कम होता है और सामंजस्य बढ़ता है।

2. राजनीतिक व्यवस्था के स्थायित्व के लिए अच्छा: साझेदारी शासन सिद्धांत राजनीतिक व्यवस्था के लिए मजबूती प्रदान करता है। जब लोग सरकार के निर्णयों में सहभागी होते हैं, तो निर्णयों की व्यापक समर्थन प्राप्त होती है और उन्हें स्थायित्व मिलता है। यह राजनीतिक स्थायित्व को बढ़ावा देता है और स्थानिक समस्याओं का समाधान करने में मदद करता है।

3. नैतिक तर्क: सत्ता की साझेदारी नैतिकता और अंतर्भूत महत्व के आधार पर भी महत्वपूर्ण है। यह नैतिक मानदंडों को प्रदर्शित करता है और सरकार को जनता की इच्छाओं और आवश्यकताओं का ध्यान देने के लिए प्रेरित करता है। यह न्यायपूर्णता, समानता, और न्याय के मूल्यों को सशक्त करता है, क्योंकि जब लोगों की भागीदारी होती है, तो निर्णयों की विचारधारा समग्रता और सामरिकता के साथ बनाई जाती है। ये भी पढ़ें: कक्षा 10 अर्थशास्त्र अध्याय 2: भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्र नोट्स । Class 10 Economics Chapter 2 Notes in Hindi PDF

सत्ता की साझेदारी की आवश्यकता 

समाज में सौहार्द्र और शांति को बनाए रखने के लिए सत्ता की साझेदारी की आवश्यकता होती है। इससे बहुसंख्यकों के आतंक से बचा जा सकता है और लोकतंत्र की महत्वाकांक्षा को सम्मानित किया जा सकता है।

साझेदारी की मदद से समाज में एकता और शांति बनाए रखने में सहायता मिलती है। यह विभिन्न सामाजिक समूहों के टकराव को कम करने में मदद करती है।

किसी भी समाज में बहुसंख्यकों के आतंक का खतरा होता है। इसके परिणामस्वरूप, अल्पसंख्यक समूह ही नहीं बल्कि समाज का खुद भी प्रभावित होता है। साझेदारी के माध्यम से बहुसंख्यकों के आतंक से बचा जा सकता है।

लोगों की आवाज ही लोकतंत्रिक सरकार की नींव होती है। इसलिए, लोकतंत्र की महत्वाकांक्षा को सम्मानित रखने के लिए सत्ता की साझेदारी जरूरी होती है।

साझेदारी के पीछे दो कारण होते हैं। पहला है समझदारी और दूसरा है नैतिकता। साझेदारी का समझदारी भरा कारण है समाज में टकराव और बहुसंख्यकों के आतंक को रोकने का प्रयास करना। साझेदारी का नैतिक कारण है लोकतंत्र की महत्वाकांक्षा को सम्मानित रखना और इसे सुरक्षित रखना।

सत्ता की साझेदारी के रूप

सत्ता को शासन के विभिन्न अंगों के बीच बाँटा जाता है: विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका हमारे संविधानिक ढांचे के तहत सत्ता के विभिन्न पहलू हैं। ये अंग एक ही स्तर पर होते हैं और अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हैं। इसे हम सत्ता का क्षैतिज बाँटवारा कहते हैं। यह बाँटवारा यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी अंग के पास असीमित शक्ति नहीं होती है और इससे संविधानिक संस्थाओं के बीच शक्ति का संतुलन बना रहता है।

सत्ता का उपयोग करने का अधिकार कार्यपालिका के पास होता है, लेकिन कार्यपालिका संसद के अधीन होती है। संसद के पास कानून बनाने का अधिकार होता है, लेकिन संसद को जनता के सामर्थ्य पर जवाब देना होता है। न्यायपालिका स्वतंत्र रहती है और इसका कार्य विधायिका और कार्यपालिका द्वारा निर्धारित नियमों के सही लागू होने की निगरानी करती है। ये भी पढ़ें: कक्षा 10 भूगोल अध्याय 1: संसाधन एवं विकास नोट्स । Class 10 Geography Chapter 1 Notes in Hindi Pdf

विभिन्न स्तरों पर सत्ता का बंटवारा

भारत एक विशाल देश है। इतने बड़े देश में सरकार चलाने के लिए सत्ता की विकेंद्रीकरण जरूरी होता है। हमारे देश में सरकार के दो मुख्य स्तर होते हैं: केंद्र सरकार और राज्य सरकार। पूरे देश की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर होती है, जबकि गणराज्य की विभिन्न इकाइयों की जिम्मेदारी राज्य सरकारें लेती हैं। दोनों के अधिकार क्षेत्र में अलग-अलग विषय होते हैं। कुछ विषय साझा सूची में रहते हैं।

भारत में सामाजिक समूहों के बीच सत्ता का बाँटवारा बहुत विविधता भरा होता है। हमारे देश में अनगिनत सामाजिक, भाषाई, धार्मिक और जातीय समूह हैं। इन विभिन्न समूहों के बीच सत्ता का विभाजन आवश्यक हो जाता है। इसका एक उदाहरण है समाज के पिछड़े वर्ग को दिया जाने वाला आरक्षण। इस तरह के आरक्षण से पिछड़े वर्ग को सरकार में सही प्रतिनिधित्व मिलता है और उनकी आवाज सुनी जाती है।

विभिन्न प्रकार के दबाव समूहों के बीच सत्ता का बँटवारा

* राजनीतिक पार्टियों के बीच सत्ता का बाँटवारा: राजनीतिक पार्टियों में सरकार बनाने का मौका सबसे बड़ी पार्टी या राजनीतिक गठबंधन को मिलता है। इसके बाद बची हुई पार्टियाँ विपक्ष बनती हैं। विपक्ष की जिम्मेदारी होती है कि सत्ताधारी पार्टी जनता की इच्छा के अनुरूप काम करे। इसके अलावा, कई प्रकार की कमेटियाँ भी बनती हैं, जिनके अध्यक्ष और सदस्य अलग-अलग पार्टियों से होते हैं।

* दबाव समूहों के बीच सत्ता का बाँटवारा: एसोचैम, छात्र संगठन, मजदूर यूनियन और अन्य विभिन्न प्रकार के दबाव समूह होते हैं। इन संगठनों के प्रतिनिधि नीति निर्धारण के कई अंशों में शामिल होते हैं। इससे इन दबाव समूहों को सत्ता में सहभागिता मिलती है।

सत्ता की साझेदारी के लाभ

• सत्ता की साझेदारी लोकतंत्र का मूल मंत्र है, जिसका अर्थ है कि जब तक सभी लोग साथ मिलकर सत्ता को साझा नहीं करते, तब तक लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो सकती।

• जब एक देश में सभी लोग देश की प्रशासनिक व्यवस्था में भागीदारी करते हैं, तो देश मजबूत होता है और उसकी विकास क्षमता बढ़ती है।

• जब हम सभी जातियों के हितों को समझते हैं, उनकी भावनाओं का सम्मान करते हैं और किसी भी भेदभाव के बिना काम करते हैं, तब किसी भी प्रकार के संघर्ष की संभावना खत्म हो जाती है और देश प्रगति की ओर अग्रसर होता है।

• सत्ता की साझेदारी द्वारा विभिन्न समूहों के बीच सहयोग करने से आपसी टकराव और आंतरिक संघर्ष की संभावना को खत्म किया जा सकता है

बेल्जियम के समाज की जातीय बनावट

• बेल्जियम एक छोटा देश है जो यूरोप में स्थित है। इसकी आबादी हरियाणा से भी कम है, लेकिन इसके समाज का ढांचा बहुत जटिल है।

• इस देश में रहने वाले लोगों में से 59% लोग डच भाषा बोलते हैं, 40% लोग फ्रेंच भाषा बोलते हैं और बाकी 1% लोग जर्मन भाषा बोलते हैं।

• बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में 80% आबादी फ्रेंच भाषी है, जबकि 20% आबादी डच भाषी है।

• यहाँ अल्पसंख्यक में फ्रेंच भाषी लोग अनुपात में अधिक हैं और वे सामृद्धिक और सशक्त हैं।

बेल्जियम की समझदारी

• भाषाई विविधताओं के कारण कई बार सांस्कृतिक और राजनीतिक विवाद होते हैं। देर से पता चला कि डच भाषी लोगों को अर्थिक विकास और शिक्षा के लाभ से वंचित किया गया था।

• इसलिए, 1950 से 1960 के दशक में फ्रेंच और डच बोलने वाले समूहों के बीच तनाव बढ़ने लगा। डच भाषी लोग देश में बहुमत थे, लेकिन राजधानी ब्रसेल्स में अल्पसंख्यक थे।

• हालांकि, बेल्जियम के लोगों ने एक नई शासन पद्धति को अपनाकर सांस्कृतिक विविधताओं और क्षेत्रीय अंतरों से होने वाली मतभेदों को दूर कर दिया।

• 1970 से 1993 के बीच, बेल्जियम ने अपने संविधान में चार संशोधन किए, ताकि देश में किसी को असमानता का अहसास न हो और सभी एकजुट रह सकें। इसे देखकर पूरी दुनिया बेल्जियम की यह समझदारी की प्रशंसा करती है।

बेल्जियम में टकराव को रोकने के लिए उठाए गए कदम 

केंद्र सरकार में डच और फ्रेंच भाषी मंत्रियों की समान संख्या होती है।

केंद्र सरकार ने देश के दो इलाकों को क्षेत्रीय सरकारों की शक्तियाँ प्रदान की हैं। ब्रसेल्स में अलग से सरकार है, जहां दोनों समुदायों को समान प्रतिनिधित्व मिलता है।

समुदायिक सरकार के निर्माण के लिए इनका चुनाव विशेष भाषा के लोगों द्वारा होता है। इस सरकार के पास सांस्कृतिक, शैक्षिक और भाषा संबंधी शक्तियाँ होती हैं।

श्रीलंका के समाज की जातीय बनावट

• श्रीलंका एक द्वीपीय देश है, जो भारत के दक्षिण तट से कुछ किलोमीटर दूर स्थित है।

• इसकी आबादी लगभग दो करोड़ है, जो हरियाणा के बराबर है।

• श्रीलंका में भी बेल्जियम की तरह कई जातियों के समूह रहते हैं।

• देश की आबादी का लगभग 74% हिस्सा सिंहली जाति का है।

• साथ ही, करीब 18% लोग तमिल जाति से हैं।

• बाकी छोटे-छोटे समुदायों में ईसाई और मुस्लिम समुदाय शामिल हैं।

श्रीलंका में टकराव

देश युद्ध पूर्वी भागों में तमिल लोग अधिक है जबकि देश के बाकी हिस्सों में सिहलीं लोग बहुसंख्या में हैं। यदि श्रीलंका में लोग चाहते तो वे भी बेल्जियम की भांति अपनी जातिय मसले का कोई उचित हल निकाल सकते थे परन्तु वहाँ के बहुसंख्यक समुदाय अथार्थ सिहलियों ने अपने बहुसंख्यकवाद को दूसरों पर थोपने का प्रयत्न किया जिससे वहां ग्रह युद्ध शुरू हो गया और आज तक थमने का नाम नहीं ले रहा है।

* गृहयुद्ध

जब किसी देश में सरकार के खिलाफ समूहों के बीच एक हिंसक लड़ाई होती है, और वह लड़ाई युद्ध की तरह दिखती है, तो उसे गृहयुद्ध कहा जाता है।

श्रीलंका में बहुसंख्यकवाद

* बहुसंख्यकवाद :- एक मान्यता है कि अगर कोई समुदाय अधिकांश होती है, तो वह अपनी पसंद के हिसाब से देश का नियंत्रण कर सकती है, और इसके लिए वह अल्पसंख्यक समुदाय की जरूरत या इच्छाओं की अनदेखी कर सकती है।

1956 के कानून द्वारा उठाए गए कदम 

1956 में एक कानून पारित हुआ जिसके द्वारा सिंहली समुदाय को शीर्षता प्राप्त करने का प्रावधान किया गया।

नए संविधान में यह निर्णय लिया गया कि सरकार बौद्ध मठ का संरक्षण और प्रोत्साहन करेगी।

सिंहली लोगों को विश्वविद्यालयों और सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दी गई।

सिंहली भाषा को एकमात्र राजभाषा घोषित किया गया, जिससे तमिल भाषी लोगों को उपेक्षा का सामना करना पड़ा।

भारत में सत्ता की साझेदारी

भारत में हमारी शासन व्यवस्था लोकतांत्रिक है। यहाँ के नागरिक सीधे मताधिकार का उपयोग करके अपने प्रतिनिधि को चुनते हैं। लोगों द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि एक सरकार का चयन करते हैं। यह चुनी हुई सरकार हमारे दैनिक शासन को संचालित करती है और नई नीतियाँ बनाती है या प्रचलित नीतियों और कानूनों में संशोधन करती है।

लोकतंत्र के किसी भी राष्ट्र में राजनीतिक शक्ति का मूल स्रोत लोगों की स्वाधीनता होती है। यह लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इस प्रकार की शासन व्यवस्था में लोग स्वराज्य के संस्थानों के माध्यम से खुद को शासन करते हैं।

एक सामान्य लोकतांत्रिक सरकार में समाज के विभिन्न समूहों और विचारों को सम्मानित किया जाता है। जननीतियों के निर्माण में हर नागरिक की आवाज सुनी जाती है। इसलिए, लोकतंत्र में महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक सत्ता का वितरण बहुत से नागरिकों के बीच इस तरीके से हो।

सत्ता की साझेदारी के विभिन्न रूप 

सत्ता का उध्ध्वाधर वितरण:-

सत्ता को विभिन्न स्तरों पर बाँटा जाता है, जो हैं:

• केन्द्रीय सरकार

• राज्य सरकार

• स्थानीय निकाय

सत्ता का क्षैतिज वितरण:-

सत्ता को सरकार के विभिन्न अंगों में बाँटा जाता है, जैसे:

• विधायिका (लोकसभा और राज्यसभा)

• कार्यपालिका (मंत्रिमंडल)

• न्यायपालिका (अदालतें)

सत्ता को विभिन्न सामाजिक समूहों, जैसे भाषायी और धार्मिक समूहों के बीच बाँटा जाता है। उदाहरण के लिए, बेल्जियम में सामुदायिक सरकार का उदाहरण है।

सत्ता को विभिन्न सामाजिक समूहों, दबाव समूहों और राजनीतिक दलों के बीच बाँटा जाता है। 

क्षैतिज वितरण

विधायिका: 

– कानूनों का निर्माण करना

– लोकसभा, राज्य सभा, और राष्ट्रपति का चयन करना

कार्यपालिका:

– कानूनों को क्रियान्वित करना

– प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद, और नौकरशाह का कार्यनिर्वाह करना

न्यायपालिका:

– कानूनों की व्याख्या करना

– सर्वोच्च न्यायालय, मुख्य न्यायालय, जिला न्यायालय, और सत्र न्यायालय का कार्यनिर्वाह करना

उद्ध्वाधर वितरण

– केंद्रीय सरकार (देश के लिए)

– राज्य / प्रांतीय सरकार (राज्यों के लिए)

– स्थानीय स्वशासन (ग्राम पंचायत, ब्लॉक समिति, जिला परिषद)

सत्ता के ऊर्ध्वाधर वितरण और क्षैतिज वितरण में अंतर

उध्ध्वाधर वितरण

  • इसमें सरकार के विभिन्न स्तरों (केंद्र, राज्य, स्थानीय सरकार) में सत्ता का बँटवारा होता है।
  • इसमें उच्चतर और निम्नतर स्तर की सरकारें होती हैं।
  • इसमें निम्नतर स्तर के अंग उच्चतर स्तर के अंगों के नियंत्रण में कार्य करते हैं।

क्षैतिज वितरण

  • इसमें सरकार के विभिन्न अंगों (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका) के बीच सत्ता का बँटवारा होता है।
  • इसमें सरकार के विभिन्न अंग एक ही स्तर पर रहकर अपनी शक्ति का उपयोग करते हैं।
  • इसमें प्रत्येक अंग दूसरे अंगों पर नियंत्रण रखता है। also:- diablo 4 apk

आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सत्ता की साझेदारी के अलग अलग तरीके

आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सत्ता की साझेदारी के अलग-अलग तरीके हैं। यहाँ हिंदी में उन तरीकों का सरलीकृत वर्णन है:

1. सरकारी अंगों के बीच सत्ता की साझेदारी:

   – विधायिका और कार्यपालिका के बीच सत्ता की साझेदारी।

2. सरकार के विभिन्न स्तरों में सत्ता की साझेदारी:

   – केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सत्ता की साझेदारी।

3. सामाजिक समूहों के बीच सत्ता की साझेदारी:

   – सरकारी नौकरियों में पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण जैसे मामलों में साझेदारी।

4. दबाव समूहों के बीच सत्ता की साझेदारी:

   – नए श्रम कानून निर्माण के समय ट्रेड यूनियन के प्रतिनिधियों से सलाह लेना जैसे मामलों में साझेदारी।

भारतीय संदर्भ में सत्ता की हिस्सेदारी का एक उदाहरण

* युक्तिपरक कारण: सत्ता की साझेदारी से विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच टकराव कम होता है और सामाजिक सौहार्द्र और शांति बनाए रखने में मदद मिलती है। इसलिए सत्ता की साझेदारी महत्वपूर्ण है। नैतिक कारण भी है, क्योंकि यह लोकतंत्र की आत्मा को अक्षुण्ण रखने में मदद करती है।

सत्ता की साझेदारी के मुख्य रूप

  • लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी का मुख्य रूप होता है.
  • इसमें शासन के विभिन्न अंगों (विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका) के बीच सत्ता का बँटवारा होता है। 
  • इस प्रकार के बँटवारे में सत्ता के विभिन्न अंग एक ही स्तर पर रहकर अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हैं।
  • इसे क्षैतिज बँटवारा भी कहा जाता है।

बेल्जियम और भारत के बीच ब्लेजर मॉडल की मुख्य विशेषता

  • बेल्जियम और भारत दोनों ही लोकतांत्रिक देश हैं।
  • दोनों देशों में केंद्र सरकार राज्य सरकारों से अधिक शक्तिशाली होती है।
  • दोनों देशों में त्रिस्तरीय सरकार होती है।

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