कक्षा 10 के हिंदी विषय के संचयन भाग के अध्याय 2 “सपनों के-से दिन” में आपका स्वागत है। इस पोस्ट में कक्षा 10 हिन्दी संचयन अध्याय 2 प्रश्न उत्तर (Class 10 Hindi Sanchayan Chapter 2 Question Answer) दिए गए हैं। जो कक्षा 10 के सभी छात्रों के एग्जाम के लिए काफी महत्वपूर्ण है यह प्रश्न उत्तर कक्षा 10 के छात्रों के एग्जाम के लिए रामबाण साबित होंगे।

कक्षा 10 हिन्दी (संचयन) अध्याय 2 प्रश्न उत्तर । Class 10 Hindi Sanchayan Chapter 2 Question Answer
प्रश्न 1. कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती-पाठ के किस अंश से यह सिद्ध होता है?
उत्तर- किसी भी भाषा का इस्तेमाल लोगों के बीच संवाद में कोई रुकावट नहीं बनाता है, यह बात इस कथानुक्रम के इस हिस्से से स्पष्ट हो जाती है। हमारे कुछ साथी राजस्थान और हरियाणा से मंडी में आकर व्यापार और दुकानदारी करते थे। जब वे बच्चे थे, तो हमें उनकी बोली समझने में बहुत मुश्किल होती थी, इसलिए उनके कुछ शब्दों से हमें हंसी आती थी। लेकिन जब हम साथ खेलते थे, तो हम सभी एक-दूसरे की बात समझ लेते थे। इससे साबित होता है कि कोई भी भाषा संवाद में रुकावट नहीं बनाती।
प्रश्न 2. पीटी साहब की ‘शाबाश’ फ़ौज के तमगों-सी क्यों लगती थी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- पीटी साहब एक बहुत कठोर इंसान थे। वे कभी हँसते नहीं थे और किसी की प्रशंसा नहीं करते थे। सभी छात्र उनसे डरते थे। वे बच्चों को धक्के मारकर पिछवाड़ा उधेड़ देते थे। छोटे बच्चे अगर थोड़ी भी अनुशासन भंग करते, तो उन्हें कठोर सजा देते थे। ऐसे कठोर स्वभाव वाले पीटी साहब बच्चों को गलती नहीं करने पर अपनी चमकीली आँखें हल्के से झपकाते हुए उन्हें शाबाश कहते थे। उनकी यह शाबाश बच्चों को फौज के तमगों को जीतने के समान लगती थी।
प्रश्न 3. नई श्रेणी में जाने और नई कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक को बालमन क्यों उदास हो उठता था?
उत्तर- नए ग्रेड में जाने पर लेखक को दुख होता था क्योंकि उसे लड़कों द्वारा पढ़ी गई हुई किताबें पढ़नी पड़ती थीं। उसके लिए पुरानी किताबों का प्रबंध हेडमास्टर साहब कर देते थे, क्योंकि लेखक के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, जबकि अन्य बच्चे नई कक्षा में नई किताबें खरीदते थे। लेखक को पुरानी किताबों और नई किताबों की खुशबू से दुख होता था।
प्रश्न 4. स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्त्वपूर्ण ‘आदमी’ फ़ौजी जवान क्यों समझने लगता था?
उत्तर- लेखक गुरदयाल सिंह फौजी को एक फौजी बनने की इच्छा थी। एक दिन, उन्होंने फौजी जवानों की परेड देखी, जहां वे फूल भरी बूट पहने हुए, शानदार वर्दी में लेफ्ट राइट करते हुए मार्च कर रहे थे। उस दृश्य को देखकर उन्हें बहुत प्रभावित हुआ और उन्हें लगा कि धोबी द्वारा धुली हुई वर्दी, पालिश की गई बूट और जुराबें पहनकर वह भी फौजी जवान की तरह दिख सकते हैं।
जब स्काउट परेड में पीटी मास्टर लेफ्ट राइट की आवाज़ देकर और मार्च करवाने लगते थे, और जब वे राइट टर्न या लेफ्ट टर्न या अबाऊट टर्न कहते थे, तब लेखक अपने छोटे-छोटे बूटों की एड़ियों को दाएं-बाएं या एक कदम पीछे मुड़ाकर बूटों की ठक-ठक की आवाज़ करते थे। ऐसा करते हुए, वह खुद को एक महत्वपूर्ण फौजी समझने लग गए, लेकिन उन्हें विद्यार्थी नहीं, फौजी समझा।
प्रश्न 5. हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों मुअत्तल कर दिया?
उत्तर- पीटी साहब चौथी कक्षा में बच्चों को फ़ारसी भी पढ़ाते थे। एक दिन बच्चे उनके द्वारा दिए गए शब्द-रूप को रटने में समस्या हो गई। इस पर पीटी साहब ने बच्चों को कठोरतापूर्ण ढंग से बनने का आदेश दिया, और उनकी पीठ को ऊँचा करने को कहा। इस समय हेडमास्टर साहब आ गए, देखकर वे उत्तेजित हो उठे। इसी कारण से हेडमास्टर ने पीटी साहब को नियंत्रण से बाहर कर दिया।
प्रश्न 6. लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल खुशी से भागे जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों उन्हें स्कूल जाना अच्छा लगने लगा?
उत्तर- गुरदयाल सिंह ने ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में बताया है कि उन्हें और उनके साथीयों को बचपन में स्कूल जाना पसंद नहीं था। चौथी कक्षा तक कुछ लड़कों को छोड़कर बाकी सभी साथी रोते-चिल्लाते हुए स्कूल जाते थे। स्कूल में उन्हें धोबी पिटाई और मास्टरों की डांट के कारण स्कूल एक उदास और भयानक स्थान के रूप में लगता था, जिससे उन्हें भय होता था।
हालांकि, कई बार ऐसी स्थितियाँ आती थीं जब उन्हें स्कूल जाने में आनंद भी आता था। यह समय जब आता था जब उनके पीटी सर स्काउटिंग का अभ्यास करवाते थे। वे छात्रों को पढ़ाई-लिखाई की जगह नीली-पीली झंडियाँ पकड़वा देते थे और वन-टू-श्री करवाते थे। इन झंडियों को हवा में लहराते देखने में बड़ी खुशी मिलती थी। जब छात्र अच्छा काम करते थे, तो पीटी सर उन्हें बधाई देते थे, जिससे उन्हें खुशी होती थी। इस प्रकार के अवसर पर स्कूल जाने में आनंदप्रद और सुख जाने वाला प्रतीत होता था।
प्रश्न 7. लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टयों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या-क्या योजनाएँ बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसकी भाँति ‘बहादुर’ बनने की कल्पना किया करता था?
उत्तर- लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए अलग-अलग योजनाएं बनाता था। उदाहरण के तौर पर, हिसाब के मास्टर जी ने 200 सवाल दिए होते थे, जिन्हें पूरा करने के लिए हर दिन 10 सवाल करने पर 20 दिन में सभी सवाल पूरे हो जाते थे। लेकिन जब छुट्टियों में खेल-कूद करने का मौका मिलता था, तो वह योजना भूल जाता था और डरता था कि मास्टर जी उसे डांटेंगे। फिर लेखक ने रोज़ 15 सवाल करने की योजना बनाई, जिससे उसे छुट्टियाँ कम लगने लगतीं थीं और दिन छोटे लगने लगते थे। साथ ही, स्कूल का भयभी बढ़ने लगा। ऐसे में, लेखक डांटे से डरते हुए भी उन लोगों की तरह बहादुर बनने की कल्पना करने लगता, जो छुट्टियों में काम करने की बजाय मास्टर जी से डांट पाते थे।
प्रश्न 8. पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर- पीटी सर, अर्थात् प्रीतमचंद, एक सरल और मेहनती अध्यापक थे। उनके व्यक्तित्व में विशेषताएँ थीं:
1. बाह्य व्यक्तित्व- पीटी सर की ऊँचाई कम थी और वे पतले-दुबले थे। उनका चेहरा चेचक से भरा हुआ था और उनकी आँखें तेज़ दिखती थीं। वे खाकी वर्दी पहनते थे और उनके पैरों पर चमड़े के बूट थे। उनके बूटों के नीचे खुरियाँ थीं और उनके बूटों के अगले हिस्से पर मोटी सिरों वाले कील थे।
2. आंतरिक व्यक्तित्व- पीटी सर एक कुशल अध्यापक थे। वे चौथी कक्षा के छात्रों को फ़ारसी सिखाते थे। उन्होंने छात्रों को मौखिक अभिव्यक्ति और याद करने की क्षमता देने का बहुत महत्व दिया। उन्होंने छात्रों को दिन-रात पढ़ाई करने की शिक्षा भी दी। वे एक अच्छे प्रशिक्षक भी थे और छात्रों को स्काउट और गाइड की ट्रेनिंग देते थे। वे छात्रों से विभिन्न रंग की झंडी पकड़कर ट्रेनिंग देते थे। छात्र उनके प्रशिक्षण सत्रों से हमेशा प्रसन्न रहते थे। । और वे छात्रों को सही काम करने पर शाबाशी भी देते थे।
3. कठोर अनुशासन प्रिय- पीटी सर अनुशासन प्रिय थे और कठोर अनुशासन बनाए रखते थे। वे छात्रों को डरावने के लिए भीड़ थे। अगर कोई छात्र अनुचित तरीके से अपना सिर हिलाता था, तो वे उस पर तत्परता से प्रतिक्रिया देते थे। वे प्रार्थना के समय भी अनुशासनहीन छात्रों को सजा देते थे।
4. संवेदनशील हृदयी- पीटी सर बाहर से कठोर दिखते थे, लेकिन अंदर से वे संवेदनशील थे। उन्होंने अपने घर में तोते पाले थे और उनके साथ बातचीत भी की जाती थी। वे छात्रों को भीगे हुए बादाम खिलाते थे जब वे सही काम करते थे। इसके अलावा, छात्रों को सही काम करने पर उन्होंने उन्हें प्रशंसा दी।
प्रश्न 9. विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के संबंध में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर- विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए कुछ युक्तियाँ हैं। पहले के समय में, शिक्षक बच्चों को बहुत कठोरता से संभालते थे। वे उन्हें पीटकर बहुत ज़्यादा सजा देते थे, जिससे उनकी त्वचा भी चोटें पहुंचाती थीं। थोड़ी सी भी अनुशासन की हानि होने पर, तीसरी और चौथी कक्षाओं के छात्रों को कठोर सजा मिलती थी ताकि वे अनुशासन की नींव को मजबूत कर सकें। उसके साथ ही, विद्यार्थियों को प्रोत्साहित और उत्साहित करने के लिए उन्हें ‘शाबाशी’ भी मिलती थी।
लेकिन आजकल इसके विपरीत हालात हैं। शिक्षकों को अब विद्यार्थियों को पीटने का अधिकार नहीं है। इसलिए विद्यार्थी आत्मविश्वासी हो गए हैं और अनुशासन की कमी की ओर बढ़ रहे हैं। हाँ, आज विद्यार्थी शिक्षकों से नहीं डरते हैं। इसके लिए विद्यालय और माता-पिता दोनों ज़िम्मेदार हैं। बच्चों में अनुशासन को विकसित करने के लिए उन्हें शारीरिक और मानसिक पीड़ा देना उचित नहीं है। उन्हें प्रेमपूर्वक नैतिक मूल्यों को सिखाना चाहिए, जिससे उनमें स्वानुशासन का विकास हो सके।
प्रश्न 10. बचपन की यादें मन को गुदगुदाने वाली होती हैं विशेषकर स्कूली दिनों की। अपने अब तक के स्कूली जीवन की खट्टी- मीठी यादों को लिखिए।
उत्तर- बचपन के और विशेषकर स्कूली दिनों की मीठी-कड़वी यादें हमेशा मन को प्रसन्न रखती हैं। ये यादें हर व्यक्ति की अपनी-अपनी होती हैं। मेरे पास भी कुछ ऐसी यादें हैं जो मुझे याद हैं। जब मैं नवीं कक्षा में पढ़ रही थी, मेरी माँ किसी कारणवश बाहर गई थीं। इसलिए मैंने बिना घर के काम किए और बिना खाने के स्कूल जाना शुरू किया। पहले तो मेरी अध्यापिका ने मुझसे बहुत नाराजगी दिखाई, फिर मुझे आधी छुट्टी में वह खिड़की के पास खड़ी देखी तो उसने फिर से नाराजगी दिखाई। अगले पीरियड में मुझे बहुत बेचैनी हो रही थी कि अध्यापिका मेरे बारे में क्या सोच रही होंगी, इसलिए मैं उनसे मिलने गई। जब मैंने उन्हें देखा, तो मेरा रोना बंद हो गया। वह मुझसे पूछा कि मुझे क्यों रोते देख रही है, तो मैंने रोते-रोते उन्हें बताया कि मेरी माँ घर पर नहीं है। उन्होंने मुझे संबोधित किया और फिर मुझे अपने डिब्बे से खाना खिलाया। आज भी, जब मैं इस घटना को याद करती हूँ, तो मेरे मन में अध्यापिका के प्रति विशेष भाव उठते हैं।
प्रश्न 11. प्रायः अभिभावक बच्चों को खेलकूद में ज्यादा रुचि लेने पर रोकते हैं और समय बरबाद न करने की नसीहत देते हैं। बताइए
+ खेल आपके लिए क्यों जरूरी हैं? आप कौन से ऐसे नियम-कायदों को अपनाएँगे जिससे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो ?
उत्तर- 1. खेल हर बच्चे के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह उनके शारीरिक और मानसिक विकास में मदद करता है। खेलने से बच्चे की सोच विस्तृत और विकसित होती है। इससे उनमें समूह में काम करने की भावना भी विकसित होती है। खेलने से बच्चे में प्रतिस्पर्धा और प्रतियोगिता की भावना जागृत होती है, और वे आगे बढ़ने के लिए होड़ और दौड़ में भाग लेने की इच्छा प्राप्त करते हैं। खेल में भाग लेने से बच्चे को अपने और अपने देश का नाम रोशन करने का मौका मिलता है।
2. मैं अपने माता-पिता के लिए वही नियम और कानून अपनाऊंगा, जिससे उनकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचेगी। इसलिए मैं समय पर खेलेंगा और समय पर वापस आऊंगा। खेलने के साथ-साथ पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान दूंगा। मैं खेलने में सिर्फ वही समय खर्च करूंगा, जो आवश्यक होगा। अर्थात् मैं केवल वही नियम और कानून अपनाऊंगा, जो मेरे माता-पिता को शांति मिलेगी। ये भी पढ़ें: कक्षा 10 हिंदी (कृतिका) अध्याय 5 प्रश्न उत्तर । Class 10 Kritika Chapter 5 Question Answer PDF
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ‘बच्चों की यह स्वाभाविक विशेषता होती है कि खेल ही उन्हें सबसे अच्छा लगता है। सपनों के-से दिन नामक पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- इस पाठ “सपनों के से दिन” से पता चलता है कि लेखक और उसके बचपन के साथी मिलकर खेलते थे। खेल-खेल में जब उन्हें चोट लग जाती थी और धूल और रक्त छिले पांव लेकर घर जाते थे, तो सभी की मां, बहनें और पिताजी उन पर बहुत चिंता करते थे और उन्हें बुरी तरह से डांटते थे, फिर भी वे अगले दिन फिर से खेलने चले आते थे। इससे स्पष्ट होता है कि बच्चों को खेलना सबसे ज्यादा पसंद होता है।
प्रश्न 2. लेखक के बचपन के समय बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- लेखक अपने बचपन के दिनों में बच्चों के साथ खेलता था। इन बच्चों में ज्यादातर स्कूल नहीं जाते थे और जो कभी जाते भी थे, उन्हें पढ़ाई में रुचि नहीं थी। एक दिन वे अपना बस्ता लेकर तालाब में फेंक आए और फिर स्कूल नहीं गए। उनका पूरा ध्यान खेलने में ही रहता था। इससे स्पष्ट होता है कि लेखक को बचपन के दिनों में पढ़ाई में रुचि नहीं थी।
प्रश्न 3. लेखक के बचपन में बच्चों के न पढ़ पाने के लिए अभिभावक अधिक जिम्मेदार थे। इससे आप कितना सहमत हैं?
उत्तर- लेखक के बचपन में अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने का प्रयास नहीं करते थे। पर छूनिये और आदतें, जैसे कि कारोबारी, अपने बच्चों को अध्यापक से कहते थे कि मास्टर जी, हमने इसे कौनसा तहसीलदार लगवाना है। थोड़ा बड़ा हो जाने पर पंडित घनश्याम दास से मुनीमी का काम सिखा देंगे। स्कूल में अभी तक यह कुछ भी नहीं सीख पाया है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि बच्चों की पढ़ाई न हो पाने के लिए अभिभावकों की ज़्यादा ज़िम्मेदारी थी।
प्रश्न 4. गरमी की छुट्टियों के पहले और आखिरी दिनों में लेखक ने क्या अंतर बताया है?
उत्तर- लेखक ने बताया है कि पहले गर्मी की छुट्टियाँ डेढ़-दो महीने तक चलती थीं। छुट्टियों की शुरुआती दो-तीन सप्ताह तक बच्चे बहुत खेलते और मस्ती करते थे। वे पूरा समय खेलने में बिताते थे। छुट्टियों के आखिरी पंद्रह-बीस दिनों में अध्यापक द्वारा दिए गए कार्यों को पूरा करने का हिसाब रखते थे और कार्य पूरा करने की योजना बनाते हुए उन छुट्टियों को भी खेलने में बिता देते थे।
प्रश्न 5. लेखक ने ‘सस्ता सौदा’ किसे कहा है? और क्यों?
उत्तर- लेखक ने “सस्ता सौदा” की बात कही है, जिसे उस समय के मास्टरों द्वारा की जाने वाली पिटाई कहा जाता था। इसका कारण यह था कि उस समय के अध्यापक गर्मी की छुट्टियों के लिए बच्चों को दो सौ सवाल देते थे। बच्चे इसके बारे में सोचते थे, जब उनकी छुट्टियाँ पंद्रह से बीस दिन बची होती थीं। वे सोचते थे कि एक दिन में दस सवाल करने पर भी उनकी छुट्टियाँ पूरी हो जाएंगी। लेकिन जब दस दिन छुट्टियाँ बीत जाते, और बीसवें दिन आता, तो बच्चे रोज़ाना बीस सवाल पूरा करने की बजाय इसके बारे में सोचने लगते थे, लेकिन काम नहीं करते थे। अंत में, मास्टरों की पिटाई को “सस्ता सौदा” मानकर वे उसे स्वीकार कर लेते थे।
प्रश्न 6. लेखक ने सातवीं कक्षा तक की जो पढ़ाई की उसमें स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी का योगदान अधिक था स्पष्ट कीजिए।
अथवा
लेखक की पढ़ाई में हेडमास्टर शर्मा जी का योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- लेखक को याद है कि उस समय पूरे साल की किताबें एक या दो रुपए में आती थीं, लेकिन अभिभावक पैसों की कमी के कारण वे उन्हें नहीं खरीद पाते थे। इस तरह की स्थिति में, उसकी पढ़ाई भी टाल जाती थी, और वह तीसरी या चौथी कक्षा में छूट जाता था। हालांकि, स्कूल के प्रधानाध्यापक, जो अमीर परिवार के बच्चों को पढ़ाते थे, वे उसकी पुरानी किताबें प्रतिवर्ष लेखक को दे दिया करते थे। इस तरीके से, लेखक ने सातवीं कक्षा तक की पढ़ाई कर ली। इस तरह, स्कूल के प्रधानाध्यापक शर्मा जी ने उसकी पढ़ाई में विशेष योगदान किया।
प्रश्न 7. पीटी मास्टर प्रीतमचंद को देखकर बच्चे क्यों डरते थे?
उत्तर- पीटी मास्टर प्रीतमचंद एक ऐसे शिक्षक थे जिन्हें हम स्कूल के समय में कभी भी मुस्कानते या हँसते नहीं देखा था। उनका शरीर कमजोर और दुबला-पतला था, उनका चेहरा माता के दागों से भरा हुआ था और उनकी आँखें तेज और भयानक दिखती थीं। उन्हें खाकी वरदी पहननी होती थी और उनके पैरों में चौड़े बूट थे। उनकी इस प्रकार की पर्सनैलिटी बच्चों के मन में भय पैदा करती थी और उन्हें डर लगता था।
प्रश्न 8. लेखक और उसके साथी प्रीतमचंद की दी गई सज़ा वाला कौन-सा दिन आजीवन नहीं भूल सके?
अथवा
फ़ारसी की कक्षा में मास्टर प्रीतमचंद ने किस तरह शारीरिक दंड दिया जो बच्चों को आजीवन याद रहा?
उत्तर- मास्टर प्रीतमचंद बच्चों को चौथी कक्षा में फ़ारसी सिखाते थे। बच्चों को फ़ारसी अंग्रेज़ी से भी कठिन लगती थी। एक हफ्ते बाद ही प्रीतमचंद ने बच्चों को शब्द रूप याद करके बोलने के लिए कहा, लेकिन कठिनाईयों के कारण कोई भी लड़का सही तरीके से नहीं सुन पाया। यह देखकर प्रीतमचंद को गुस्सा आया और उन्होंने बच्चों को मुर्गा बना दिया। लड़कों के लिए मुर्गा बनाना बहुत कठिन होता था। इस शारीरिक दंड को बच्चे आजीवन नहीं भूल सकते।
प्रश्न 9. हेडमास्टर ने प्रीतमचंद के विरुद्ध क्या कार्यवाही की?
उत्तर- हेडमास्टर शर्मा जी ने देखा कि प्रीतमचंद ने छात्रों को मुर्गा बनवाकर शारीरिक दंड दे रहे हैं, तो उन्होंने इस पर बहुत गुस्सा किया। वे तत्काल इसे रोकने का आदेश दिया। उन्होंने प्रीतमचंद को निलंबित करने का आदेश दिया और उन्हें राजधानी नाभा में भेज दिया। वहां के शिक्षा विभाग के डायरेक्टर हरजीलाल की मंजूरी आवश्यक थी। जब तक यह मंजूरी प्राप्त नहीं होती, प्रीतमचंद स्कूल में वापस नहीं आ सकते थे।
प्रश्न 10. प्रीतमचंद के निलंबन के बाद भी बच्चों के मन में उनका डर किस तरह समाया था?
उत्तर- विद्यालय में एक लड़के थे जिन्हें पीटी मास्टर प्रीतमचंद ने बहुत पीटा था। वे लड़के उससे इतने डरे हुए थे कि जब तक डायरेक्टर उन्हें बचाने का आदेश नहीं देते, वे स्कूल में आने के लिए हिचकिचाते रहते थे। हर बार जब फ़ारसी की घंटी बजती, तो उनके दिल की धड़कनें तेज हो जाती थी। लेकिन जब तक शर्मा जी या मास्टर नौहरिया राम जी उन्हें फ़ारसी पढ़ाने नहीं आते, उनका डर बच्चों के मन में जमा रहता था। इस तरह उनका डर लड़कों के मन में गहरी छाप छोड़ चुका था।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. लेखक ने अपने विद्यालय को हरा- भरा बनाने के लिए किए गए प्रयासों का वर्णन किया है। इससे आपको क्या प्रेरणा मिलती है? (मूल्यपरक प्रश्न)
उत्तर- लेखक के विद्यालय में अंदर जाने के रास्ते के दोनों ओर अलियार के ढंग से कटे-छाँटे झाड़ उग गए थे। उसे उनके नीम जैसे पत्तों की सुगंध अच्छी लगती थी। इसके अलावा उन दिनों कई तरह के फूल उग रहे थे। इनमें गुलाब, गेंदा और मोतिया की दूध-सी कलियाँ होती थीं, जो बच्चों को आकर्षित करती थीं। ये फूलदार पौधे विद्यालय की सुंदरता में वृद्धि कर रहे थे। इससे हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें भी अपने विद्यालय को स्वच्छ बनाते हुए हरा-भरा बनाने का प्रयास करना चाहिए। हमें तरह-तरह के पौधे लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए और विद्यालय को हरा-भरा बनाने में अपना योगदान देना चाहिए।
प्रश्न 2. लेखक और उसके साथियों द्वारा गरमी की छुट्टियाँ बिताने का ढंग आजकल के बच्चों द्वारा बिताई जाने वाली छुट्टियों से किस तरह अलग होता था? (मूल्यपरक प्रश्न)
उत्तर- लेखक और उसके दोस्त गर्मी की छुट्टियों में खेलकूद करते थे। वे अपने घर से थोड़ी दूर एक तालाब पर जाते और वहां अपने कपड़े उतारकर पानी में कूदते थे। कुछ समय बाद, उन्होंने एक रेतीले टीले पर जाकर रेत पर लेटना शुरू कर दिया। गीले हो गए शरीर को गरम रेत से लथपथाते हुए वे वहीं से दौड़ने लगते और कभी-कभी ऊंची जगह से तालाब में छलांग लगा देते। फिर रेत को गंदे पानी से साफ करने के बाद वे टीले की ओर भागते थे।
मुझे याद नहीं कि वे यह सब पाँच-दस बार या पंद्रह-बीस बार करते थे, लेकिन उन्हें इससे खुशी मिलती थी। आजकल के बच्चे ग्रीष्मकालीन छुट्टियों को बहुत अलग ढंग से बिताते हैं। अब तालाब नहीं होने के कारण वहां नहाने का आनंद नहीं लिया जा सकता। बच्चे घर में रहकर लूडो, चेस, वीडियो गेम या कंप्यूटर पर गेम खेलते हैं। वे टीवी पर कार्टून और फ़िल्में देखकर अपना समय बिताते हैं। कुछ बच्चे तो माता-पिता के साथ ठंडे स्थानों या पर्वतीय स्थानों की सैर के लिए जाते हैं और वहां आनंद उठाते हैं।
प्रश्न 3. मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल से क्यों निलंबित कर दिया गया? निलंबन के औचित्य और उस घटना से उभरने वाले जीवन-मूल्यों पर विचार कीजिए। (मूल्यपरक प्रश्न)
उत्तर- मास्टर प्रीतमचंद एक कठोर शिक्षक थे। वे छात्रों की थोड़ी सी गलती देखते ही उन्हें पिटाई कर देते थे। वे छात्रों को फ़ारसी सिखाते थे। छात्रों को सिखाते-सिखाते एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि प्रीतमचंद ने उनसे कहा कि वे शब्दों के रूप याद करके आएं। अगले दिन, जब कोई छात्र शब्द के रूप में याद नहीं कर पाया, तो उन्होंने सभी को मुर्गा बनवा दिया और उन्हें खड़े होने के लिए पीठ को ऊँचा करने कहा। इसी समय, हेडमास्टर साहब वहाँ पहुंच गए। उन्होंने प्रीतमचंद को तुरंत यह काम बंद करने के लिए कहा और उन्हें सस्पेंड कर दिया।
प्रीतमचंद का सस्पेंड कर दिया जाना उचित था, क्योंकि बच्चों को इस तरह फ़ारसी या किसी भी विषय को पढ़ाना सही नहीं होता। शारीरिक दंड देकर बच्चों को ज्ञान नहीं दिया जा सकता है। इससे बच्चे डर जाते हैं और उनकी शिक्षा में रुचि कम हो जाती है।
प्रश्न 4. ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में हेडमास्टर शर्मा जी की, बच्चों को मारने-पीटने वाले अध्यापकों के प्रति क्या धारणा थी? जीवन- मूल्यों के संदर्भ में उसके औचित्य पर अपने विचार लिखिए। (मूल्यपरक प्रश्न)
उत्तर- सपनों के-से दिन के पाठ में बताया गया है कि हेडमास्टर शर्मा जी बच्चों के प्यार करते थे। वे उन्हें पढ़ाने के द्वारा अनुशासित रखना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने बच्चों को प्रेम, अपनत्व, पुरस्कार आदि के माध्यम से सहायता की। वे यह ध्यान रखते थे कि उनके छात्र गलती न करें, लेकिन उन्हें दंडित करने के पक्षधर नहीं थे। उन्हें ऐसे शिक्षकों के खिलाफ संवेदनशील होने के कारण वे कठोर कदम उठाते थे। उन्होंने ऐसे अध्यापकों के बारे में स्कूल में एंट्री रोकने की सलाह दी थी।
हेडमास्टर शर्मा जी का यह कार्य बिल्कुल सही था, क्योंकि शिक्षा के नाम पर छात्रों को मारपीट जैसे तरीके से डराना ठीक नहीं होता। बहुत से बच्चे इस डर के कारण स्कूल छोड़ देते हैं और डरे-सहमे होकर कक्षा में बैठे रहते हैं, जिससे उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है। ऐसे बच्चों के मन में शिक्षकों के प्रति घृणा और असम्मान की भावना पैदा होती है।
प्रश्न 5. ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर बताइए कि बच्चों का खेलकूद में अधिक रुचि लेना अभिभावकों को अप्रिय क्यों लगता था ? पढ़ाई के साथ खेलों का छात्र जीवन में क्या महत्त्व है और इससे किन जीवन-मूल्यों की प्रेरणा मिलती है? (मूल्यपरक प्रश्न)
उत्तर- बच्चों के अभिभावक जो सपनों के-से दिन पाठ में उल्लिखित हैं, उनमें अधिकांश लोगों को पढ़ाई की कमी थी। वे अपठ्य रहकर शिक्षा की महत्त्वता को समझने में असमर्थ थे। उन्हें खेलकूद का ज्यादा महत्व नहीं था, वे सोचते थे कि खेलकूद सिर्फ समय बर्बाद करने का काम है। इस सोच के कारण, जब बच्चे खेलकूद में चोट लगाकर और बहुत सारे जगह घायल होकर लौटते, तो उन्हें प्यार देने की जगह पिटाई की जाती थी। उन्हें समझ नहीं था कि खेलों की भूमिका शारीरिक विकास और जीवन-मूल्यों के उन्नयन में कितनी महत्वपूर्ण होती है, इसलिए उन्हें खेलकूद में रुचि नहीं थी।
छात्रों के लिए पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद का भी विशेष महत्त्व होता है। ये खेलकूद हमारे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आवश्यक होते हैं, लेकिन साथ ही सहयोग की भावना, सम्मेलन, सामूहिकता, मिलन-जुलन की भावना, हार-जीत को समानता से स्वीकार करना, त्याग, प्रेम सद्भाव जैसे जीवन-मूल्यों को उभारते हैं और हमें मजबूत बनाते हैं। इन जीवन-मूल्यों को अपनाकर व्यक्ति एक अच्छा इंसान बनता है।