कक्षा 10 के भूगोल के अध्याय 4 : कृषि में आपका स्वागत है। इस पोस्ट में कक्षा 10 भूगोल अध्याय: 4 कृषि नोट्स (Class 10 Geography Chapter 4 Notes) दिए गए हैं। जो कक्षा 10 के सभी छात्रों के एग्जाम के लिए काफी महत्वपूर्ण है यह नोट्स आपके एग्जाम के लिए रामबाण साबित होंगे।

कक्षा 10 भूगोल अध्याय: 4 कृषि नोट्स । Class 10 Geography Chapter 4 Notes
कृषि
कृषि हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्य है, जो हमें अधिकांश खाद्य उपजाता है। कृषि न केवल खाद्य उत्पादों का उत्पादन करती है, बल्कि इससे हमें विभिन्न उद्योगों के लिए भी कच्चा माल मिलता है। इसके अतिरिक्त, हम चाय, कॉफी, मसाले आदि जैसे कुछ उत्पादों को भी विदेशों में निर्यात करते हैं।
कृषि प्रक्रिया
1. जुताई: खेत को जोतना और मिट्टी को उँगलना।
2. बुवाई: बीज बोना।
3. निराई: खरपतवार को निकालना।
4. सिंचाई: पानी डालना।
5. खाद डालना: खाद या उर्वरक डालना।
6. कीटनाशक छिड़कना: कीटों को मारने वाली दवा छिड़कना।
7. कटाई: फसल को पकने पर काटना।
8. दलाई / गहराई: बालियों में से बीजों को अलग करना।
कृषि प्रणाली
• निर्वाह कृषि
• गहन कृषि
• वाणिज्यिक कृषि
• रोपण कृषि
प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि
इस प्रकार की खेती छोटे ज़मीन के टुकड़ों पर होती है। इसमें किसान और उनके परिवार या समुदाय के मेहनती कामकाज का इस्तेमाल होता है। यह खेती मानसून और ज़मीन की उर्वरा पर निर्भर करती है। हम उस स्थान की जलवायु के आधार पर ही फ़सल का चयन करते हैं।
कर्तन दहन प्रणाली/ स्थानांतरित कृषि
यह खेती प्राथमिक रूप से जंगली भूमि के टुकड़ों को साफ़ करके किया जाता है। किसान उन जमीनों पर खेती करता है जो जलवायु और उर्वरा मृदा के लिए उपयुक्त होते हैं। जब उस जमीन की उर्वरा कम हो जाती है तो वह किसी दूसरी जमीन के टुकड़े पर खेती करता है।
गहन निर्वाह कृषि
इस तरह की खेती में किसान एक छोटे भूमि पर साधारण उपकरणों और अधिक मेहनत के साथ खेती करता है। यह खेती उष्णकटिबंधीय जलवायु और उर्वरा मृदा वाले खेत में होती है, जहां एक वर्ष में एक से अधिक फ़सलें उगा सकती हैं। चावल प्रमुख होती है और इसके अलावा गेहूं, मक्का, दलहन और तिलहन जैसी फसलें भी उगाई जा सकती हैं। इस तरह की खेती में किसान को धूपी दिनों के साथ-साथ उच्च उर्वरा और मृदा वाले खेत में ध्यान देना पड़ता है।
वाणिज्यिक कृषि
इस प्रकार की कृषि में मुख्य लक्षण यह है कि उच्च पैदावार प्राप्त करने के लिए आधुनिक निवेशों जैसे कीटनाशक, उर्वरक और प्रभावी बीजों का उपयोग किया जाता है। यह कृषि प्रणाली विभिन्न राज्यों में अलग-अलग होती है। उदाहरण के लिए, हरियाणा और पंजाब में चावल वाणिज्यिक फसल के रूप में उगाई जाती है, लेकिन ओडिशा में यह एक जीविका फसल के रूप में उगाई जाती है।
रोपण कृषि
इस प्रकार की कृषि में बड़े क्षेत्र में एकल फसलों को बोया जाता है। इसमें अधिक पूंजी निवेश और मेहनत का प्रयोग होता है। भारत में चाय, कॉफ़ी, रबड़, गन्ना, केला आदि रोपण कृषि की मुख्य फसलें हैं।
गहन निर्वाह खेती और वाणिज्यिक खेती के बीच अंतर
विशेषता | गहन निर्वाह खेती | वाणिज्यिक खेती |
---|---|---|
जमीन का प्रयोग | छोटे भूमि पर | बड़े क्षेत्र में |
प्रयोगिता | औज़ारों और श्रम का प्रयोग | उच्च निवेश और प्रभावी तकनीक का प्रयोग |
फसलें | मुख्य रूप से चावल, गेहूं, मक्का, दलहन, तिलहन | चाय, कॉफ़ी, रबड़, गन्ना, केला आदि |
जलवायु के प्रभाव | मानसून और उर्वरा पर निर्भर | उच्च उर्वरा और मृदा वाले खेत में |
उत्पादकता | मध्यम से उच्च | उच्च |
बाजार परिचालन | स्थानीय बाजार | राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार |
प्रौद्योगिकी | पारंपरिक तरीकों का प्रयोग | आधुनिक तकनीकी सुविधाओं का प्रयोग |
उदाहरण | प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि | वाणिज्यिक फसलें |
कृषि ऋतुएं
भारत में तीन शस्य ऋतुएँ हैं, जो इस प्रकार हैं:-
- रबी
- खरीफ
- जायद
यहाँ आपके लिए सरल हिंदी भाषा में लिखा गया है:
रबी फसलें
ये फसलें शीतकालीन मौसम में अक्टूबर से दिसंबर के बीच बोई जाती हैं और गर्मी के मौसम में अप्रैल से जून के बीच काट ली जाती हैं। इसमें गेहूं, जौ, मटर, चना और सरसों जैसी मुख्य फसलें होती हैं।
खरीफ फसलें
खरीफ फसलें देश के विभिन्न क्षेत्रों में मानसून के साथ जून-जुलाई में बोई जाती हैं और सितंबर-अक्टूबर में काट ली जाती हैं। इसमें चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर, मूँग, उड़द, कपास, जूट, मूँगफली और सोयाबीन जैसी मुख्य फसलें होती हैं।
जायद
जायद एक ग्रीष्मकालीन फसल है जो रबी और खरीफ फसलों के बीच बोई जाती है। यह फसलें गर्मी के मौसम में उगाई जाती हैं और मुख्य रूप से तरबूज, खीरा, सब्जियां और चारे की फसलें होती हैं। गन्ने की फसल को पकने में लगभग एक साल लगता है।
कृषि की मुख्य फसलें
• खाद्य फसलें:- गेहूं, चावल, मक्का, दलहन, तिलहन
★ नकदी फसलें:- चाय, कॉफी, रबड़, जूट, कपास
★ बागवानी फसलें:- फल, फूल, सब्जियां
भारत में मुख्य फसलें
भारत में मुख्य रूप से चावल, गेहूँ, मोटे अनाज, दालें (दलहन, चाय, कॉफी, गन्ना, तिलहन, कपास, जूट इत्यादि फसलें उगाई जाती हैं।
मुख्य फसलें
चावल
चावल भारत में सबसे अधिक बोयी जाने वाली फसल है। हमारा देश दुनिया में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक है।
जलवायु: धान एक उष्णकटिबंधीय फसल है और यह अच्छे से मानसून के समय उगता है।
तापमान: चावल के लिए तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से ऊपर होना चाहिए, और यह फसल भारी बरसात की आवश्यकता होती है।
वर्षा: चावल के लिए 100 सेमी से ऊपर की वर्षा की आवश्यकता होती है। गर्मियों में अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की जरूरत पड़ती है।
खेती क्षेत्र: चावल की खेती उत्तर और उत्तर पूर्वी भारत के मैदानी क्षेत्र, तटीय क्षेत्र और डेल्टा क्षेत्र में की जाती है। पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, और राजस्थान के कुछ हिस्सों में सिंचाई की मदद से चावल की खेती होती है।
गेहूं
गेहूं एक महत्वपूर्ण खाद्य फसल है। यह देश के उत्तर और उत्तर पश्चिमी भागों में उगाई जाती है। यह मुख्य खाद्यान्न फसल है।
मृदा प्रकार: गेहूं के लिए जलवायु उपयुक्त होती है, जैसे जलोढ़ मिट्टी और काली मिट्टी।
तापमान: गेहूं को वृद्धि के समय ठंडे मौसम और कटाई के समय गर्म धूप की आवश्यकता होती है।
वर्षा: गेहूं के लिए वार्षिक वर्षा 50 से 75 सेंटीमीटर की आवश्यकता होती है।
खेती क्षेत्र: गेहूं की खेती दक्षिण पश्चिमी दक्षिण भारत और काली मिट्टी वाले क्षेत्रों में गंगा और सतलुज के मैदानों में की जाती है।
गेहूं उत्पादक राज्य: पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान इत्यादि गेहूं की प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
मोटे अनाज
ज्वार, बाजरा और रागी भारत में बड़े मात्रा में उगाए जाने वाले महत्वपूर्ण अनाज हैं। हालांकि, इन्हें अनाज के रूप में जाना जाता है, लेकिन इनमें पोषक तत्वों की मात्रा बहुत अधिक होती है।
ज्वार भारतीय कृषि के लिए तीसरी सबसे महत्वपूर्ण फसल है।
बाजरा:
मृदा प्रकार: यह बलूई और काली मिट्टी पर उगाया जाता है।
बाजरा के प्रमुख उत्पादक राज्य: राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा इसके मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
रागी:
मृदा प्रकार: रागी शुष्क क्षेत्रों में उगाई जाती है और यह लाल, काली, बलूई, दोमट और काली मिट्टी पर अच्छे से उगती है।
रागी के प्रमुख उत्पादक राज्य: कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, झारखंड और अरुणाचल प्रदेश हैं।
मक्का:
मक्का एक ऐसी फसल है जिसका उपयोग भोजन और चारा दोनों के रूप में होता है। यह एक खरीफ फसल है।
तापमान: मक्का को 21 से 27 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।
मृदा प्रकार: मक्का को पुरानी जलोढ़ मिट्टी पर अच्छे से उगाया जाता है।
मक्का के प्रमुख उत्पादक राज्य: कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना मक्का के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
मक्का के उत्पादन को उच्च प्रदर्शन वाले बीज, उर्वरक और सिंचाई जैसे आधुनिक प्रौद्योगिक निवेशों से बढ़ाया जा सकता है।
दालें
दालें भारत में बहुत महत्वपूर्ण फसलें हैं। यहाँ दाल का उत्पादन नहीं सिर्फ बहुत अधिक है, बल्कि भारत में दालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है।
दालें शाकाहारी खाने में सबसे अधिक प्रोटीन प्रदान करती हैं। भारत की मुख्य दलहनी फसलें हैं: तुर (अरहर), उड़द, मूँग, मसूर, मटर और चना।
दालों को कम नमी की आवश्यकता होती है और इन्हें शुष्क परिस्थितियों में भी उगाया जा सकता है। इन फसलों की विशेषता यह है कि वे वायु से नाइट्रोजन लेकर भूमि की उर्वरता को बनाए रखती हैं, जिसके कारण इन्हें आमतौर पर अन्य फसलों के साथ आवर्ती (rotating) रूप में बोया जाता है।
दाल उत्पादक राज्य: भारत में मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक दाल के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
खाद्यान्नों के अलावा अन्य खाद्य फसलें
दुनिया में मूंगफली का उत्पादन चीन (प्रथम), भारत (दूसरा) और रेपसीड उत्पादन में कनाडा, प्रथम, चीन, दूसरा और भारत दुनिया में तीसरा |
चाय
चाय विश्व में उत्पादन के मामले में चीन के बाद दूसरी सबसे बड़ी देश है।
जलवायु: चाय की खेती उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय (गर्म और ठंडी) जलवायु में अच्छे रूप से होती है।
मृदा प्रकार: चाय के लिए उपयुक्त मिट्टी गहरी और उपजाऊ होती है, जिसमें हायूमस और कार्बनिक पदार्थों की प्रचुरता होती है।
वर्षा: चाय की खेती के लिए सालाना 150 से 300 सेमी (सेंटीमीटर) वर्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। यहां पर्याप्त मात्रा में बारिश और बराबर रूप से वर्षा की वितरण होना चाहिए।
प्रमुख चाय उत्पादक राज्य: चाय की प्रमुख उत्पादक राज्य हैं असम और पश्चिम बंगाल। ये भी पढ़ें: कक्षा 10 भूगोल अध्याय 2: वन एवं वन्य जीव संसाधन जैव विविधता नोट्स। Class 10 Geography Chapter 2 Notes In Hindi Pdf
कॉफी
कॉफी भी चाय की तरह बागानों में उगाई जाती है। भारत में पहली बार कॉफी की खेती यमन से लाई गई थी। इसकी शुरुआत बाबा बूदन पहाड़ियों में हुई थी।
बागवानी फसलें
2017 में भारत फलों और सब्जियों के उत्पादन में चीन के बाद दूसरे स्थान पर था। भारत फलों और सब्जियों के उत्पादन में दूसरे स्थान पर था। भारत उष्णकटिबंधीय और शीतोष्णकटिबंधीय दोनों प्रकार के फलों का उत्पादन करता है।
भारत में मटर, फूलगोभी, प्याज, बंदगोभी, टमाटर, बैंगन और आलू का उत्पादन मुख्य रूप से होता है।
अखाद्य फसलें
रबड़
रबर एक भूमध्यरेखीय क्षेत्र की फसल है, लेकिन विशेष परिस्थितियों में यह उष्ण और उपोष्ण क्षेत्रों में भी उगाई जाती है। यह एक महत्वपूर्ण कच्चा माल है जिसका उद्योगों में उपयोग होता है।
वर्षा: इसे 200 सेमी से अधिक वर्षा और 25° सेल्सियस से अधिक तापमान वाली नम और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है।
रबर के प्रमुख उत्पादक राज्य: रबर को मुख्य रूप से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और मेघालय के गारो पहाड़ियों में उगाया जाता है।
कपास
भारत को कपास के पौधे का मूल स्थान माना जाता है। सूती कपड़ा उद्योग में कपास एक मुख्य कच्चा माल है। कपास का उत्पादन में भारत विश्व में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है।
मृदा प्रकार: दक्षिणी पठार के शुष्कतर भागों में काली मिट्टी को कपास उत्पादन के लिए उपयुक्त माना जाता है।
तापमान: कपास को उगाने के लिए उच्च तापमान, हल्की वर्षा या सिंचाई, 210 पला रहित दिन और खिली धूप की आवश्यकता होती है।
जूट
जूट के लिए अच्छी जल निकासी वाले बाढ़ के मैदानों की उपजाऊ मिट्टी की जरूरत होती है। जूट के मुख्य उत्पादक राज्य हैं पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, उड़ीसा और मेघालय।
शस्यावर्तन: भूमि की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए भूमि के किसी टुकड़े पर फसलें बदल-बदल कर बोना जाता है।
चकबंदी: बिखरी हुई कृषि जोतों या खेतों को एक साथ मिलाकर आर्थिक रूप से लाभप्रद बनाना चकबंदी कहलाती है। ये भी पढ़ें : कक्षा 10 भूगोल अध्याय 3: जल संसाधन नोट्स । Class 10 Geography Chapter 3 Notes in Hindi Pdf
हरित क्रांति
कृषि क्षेत्र में उच्च उत्पादनशील बीजों का उपयोग करने, आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने, और अच्छी खाद और उर्वरकों का उपयोग करने से कुछ फसलों, विशेष रूप से गेहूँ, के उत्पादन में वृद्धि को हरित क्रांति कहा जाता है।
हरित क्रांति की समस्याएं:
• अत्यधिक रसायनों के कारण भूमि का निम्नीकरण हो रहा है।
• सिंचाई की अधिकता से जल स्तर नीचा हो रहा है।
• जैव विविधता की समाप्ति हो रही है।
• अमीर और गरीब किसानों के बीच अंतर बढ़ गया है।
श्वेत क्रांति
दूध के उत्पादन में वृद्धि के लिए पशुओं की नस्लों को सुधारना (आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करके) को श्वेत क्रांति कहा जाता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व प्रमुख है। लगभग दो तिहाई आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर सीधे निर्भर करती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व
- भारत कृषि प्रधान देश है। लगभग दो तिहाई आबादी सीधे कृषि पर निर्भर करती है।
- कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य हिस्सा है।
- यह सभी घरेलू उत्पाद का 26% योगदान करती है।
- कृषि खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करती है और विभिन्न उद्योगों के लिए बहुत सारी कच्ची सामग्री का उत्पादन करती है।
भारतीय कृषि की विशेषताएं
- किसानों के पास एक छोटा सा खेत रहता है, जहां वे अपने खुद के उपभोग के लिए फसलें उगाते हैं।
- कृषि गतिविधियों में पशुओं का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
- किसानों का मुख्यतः मानसून की वर्षा पर निर्भर होता है।
भारतीय कृषि पर भूमंडलीय के प्रभाव
• भारतीय किसानों के लिए यह समस्या हो सकती है कि इन उत्पादों की कीमतें हर साल अस्थिर रहती हैं और उतार-चढ़ाव होता है।
• अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर कृषि उत्पादों की कीमतें नेतृत्व करने वाली नीतियों पर निर्भर करती हैं, जिसका प्रभाव दूसरे देशों पर हो सकता है।
• प्रमुख कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा दिया जा रहा है।
• उच्च उत्पादकता वाली फसलों की खेती में बड़ा परिवर्तन हुआ है।
• इस नए संदर्भ में, आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके मौलिक ढांचे में निवेश, क्रेडिट विपणन और प्रसंस्करण सुविधाओं का विस्तार हुआ है।
भारत में घटते खाद्य उत्पादन के लिए उत्तरदायी कारण
• कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा के कारण अनुजीविका क्षेत्रों में कमी हो सकती है।
• रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अधिक उपयोग के कारण उत्पादन क्षमता में कमी हो सकती है।
• भू-जल स्तर के अत्यधिक दोहन के कारण भौम जल स्तर नीचे आ गया है, जिससे कृषि की लागत में वृद्धि होती है।
• अपर्याप्त भंडारण क्षमता और बाजार की कमी के कारण समस्या हो सकती है।
भारत में किसानों के सामने चुनोतियाँ
भारत में किसानों के सामने कई चुनौतियां हैं:
– पहली चुनौती है मानसून की अनिश्चितता, जिसके कारण वर्षा की समयबद्धता और मात्रा में अस्थिरता होती है।
– दूसरी चुनौती है गरीबी और ऋण का दुस्साहस्र, जो किसानों को आर्थिक संकट में डाल सकता है।
– तीसरी चुनौती है शहरों की ओर पलायन, जहां किसानों को अधिक रोजगार और आवास की सुविधा के लिए शहरों की ओर रुचि हो रही है।
– चौथी चुनौती है सरकारी सुविधाओं तक पहुंच में कठिनाई और बिचौलिए, जहां किसानों को सरकारी योजनाओं और लाभों का ठीक से लाभ नहीं मिल पा रहा है।
– पांचवीं चुनौती है अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता, जो भारतीय किसानों को विदेशी बाजारों में सामरिक मुकाबले का सामना करना पड़ता है।
भारत में कृषिगत सुधारों के उपाय
भारत में कृषिगत सुधार के लिए निम्नलिखित उपाय हैं:
– अच्छी सिंचाई व्यवस्था, जैविक खाद, और आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग करना।
– किसानों को प्रत्यक्ष सहायता और बैंक खाते में सहायता राशि की सीधी पहुंच सुनिश्चित करना।
– सरकारी सहायता और सस्ते ऋण का लाभ उठाना।
– बिजली और पानी की सुलभता को सुनिश्चित करना।
– किसानों को आसानी से बाजार तक पहुंचने की व्यवस्था करना।
– फसल बीमा का उपयोग बाढ़, सूखे, चक्रवात, आग, कीट आदि से बचाव के लिए करना।
– न्यूनतम समर्थन मूल्य, ग्रामीण बैंक, और किसान कार्ड की व्यवस्था करना।
– कृषि संबंधी शिक्षा और मौसम संबंधी जानकारी प्रदान करना।
– राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कृषि सेमिनारों का आयोजन करना और इसकी आम किसानों तक पहुंच सुनिश्चित करना।
– कृषि विद्यालय, विश्वविद्यालय और अनुसंधान केंद्रों की स्थापना और उपयोग करना।
सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार
- किसानों को उनकी फसलों के लिए बीमा सुविधा देना। यानी उन्हें फसल की हानि के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करना।
- सहकारी बैंकों को विकासित करके किसानों को ऋण सुविधा प्रदान करना। इससे किसान धन की समस्याओं का सामाधान कर सकते हैं।
- फसलों के समर्थन मूल्य को उचित ढंग से निर्धारित करके किसानों को प्रोत्साहित करना। जिससे उन्हें अच्छा मूल्य मिले और उनकी आय बढ़े।
- मौसम संबंधी सूचनाएं समय-समय पर प्रसारित करना। ताकि किसान अग्रिम जानकारी प्राप्त कर सके और उपयुक्त कदम उठा सके।
- कृषि से संबंधित नवीन तकनीक, उपकरण, उर्वरक आदि के बारे में कार्यक्रम रेडियो और दूरदर्शन पर प्रसारित करना। ताकि किसानों को इन नवीनतम विकासों के बारे में जागरूकता हो सके।