कक्षा 10 भूगोल अध्याय 2: वन एवं वन्य जीव संसाधन जैव विविधता नोट्स। Class 10 Geography Chapter 2 Notes In Hindi Pdf

कक्षा 10 के भूगोल के अध्याय 2 वन एवं वन्य जीव संसाधन जैव विविधता में आपका स्वागत है। इस पोस्ट में कक्षा 10 भूगोल अध्याय 2: वन एवं वन्य जीव संसाधन जैव विविधता नोट्स (Class 10 Geography Chapter 2 Notes) दिए गए हैं जो कक्षा 10 के सभी छात्रों के एग्जाम के लिए काफी महत्वपूर्ण है। यह नोट्स आपके एग्जाम के लिए कामगार साबित होंगे। 

कक्षा 10 भूगोल अध्याय 2: वन एवं वन्य जीव संसाधन जैव विविधता नोट्स। Class 10 Geography Chapter 2 Notes In Hindi Pdf

कक्षा 10 भूगोल अध्याय 2: वन एवं वन्य जीव संसाधन जैव विविधता नोट्स । Class 10 Geography Chapter 2 Notes

वन एवं वन्य जीव संसाधन जैव विविधता

जैव विविधता

जैव विविधता का अर्थ होता है कि प्राकृतिक रूप से जुड़े हुए पौधों और जानवरों के विभिन्न प्रकार जो आपस में घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए होते हैं और एक दूसरे पर निर्भर होते हैं।

प्राकृतिक वनस्पति 

प्राकृतिक वनस्पति का अर्थ होता है प्राकृतिक रूप से उगने और पनपने वाले पौधों का समूह, जैसे कि वन, घास, और भूमि। इसे अक्षरित वनस्पति भी कहा जाता है।

स्वदेशी वनस्पति प्रजातियां

स्थानिक पौधे (प्राकृतिक) वनस्पति जो भारतीय में विशेष रूप से पायी जाती है, उसे स्वदेशी वनस्पति प्रजातियाँ भी कहते हैं।

पारितंत्र (परिस्थितिकी तंत्र) 

पारितंत्र (परिस्थितिकी तंत्र) के अनुसार, किसी क्षेत्र में पौधे और जानवर अपने आसपास के भौतिक पर्यावरण पर निर्भर होते हैं और एक दूसरे से जुड़े होते हैं। यह तंत्र मानव के लिए भी महत्वपूर्ण है।

वन्यजीवन

वन जीव जो कि अपने प्राकृतिक पर्यावरण में रहते हैं:- फ्लोटा और फौना।

  • फ्लोटा:- किसी क्षेत्र या काल विशेष के पादप ।
  • फौना:- जंतुओं की प्रजातियां। 

भारत में वनस्पतिजात और प्राणिजात

भारत में हमारे पौधे (वनस्पति) बहुत विविध हैं। यहां लगभग 47,000 प्रकार के पौधे और 15,000 प्रकार के फूल पाए जाते हैं जो हमारी देशी जनजाति हैं।

• हमारी जानवरों (फौना) की संख्या भी बहुत अधिक है। यहां 81,000 से ज्यादा प्राणियों और जन्तुओं की प्रजातियां हैं। यहां 1,200 से अधिक पक्षियों और 2,500 से अधिक मछलियों की प्रजातियां हैं। इसके अलावा, यहां लगभग 60,000 कीट-पतंगों की प्रजातियां भी पाई जाती हैं।

भारत मे लुप्तप्राय प्रजातियाँ जो नाजुक अवस्था में हैं

चीता, गुलाबी सिर वाली बत्तख, पहाड़ी कोयल और जंगली चित्तीदार उल्लू और मधुका सिगनिस (महुआ की जंगली किस्म) और हुबरड़िया हेप्टान्यूरोन (घास की प्रजाति) आदि। 

लुप्त होने का खतरा झेल रही प्रजातियाँ

भारत में बड़े प्राणियों में से स्तनधरियों की 79 जातियाँ, पक्षियों की 44 जातियाँ, सरीसृपों की 15 जातियाँ और जलस्थलचरों की 3 जातियां लुप्त होने का खतरा झेल रही है। लगभग 1500 पादप जातियों के भी लुप्त होने का खतरा बना हुआ है। ये भी पढ़ें: कक्षा 10 इतिहास अध्याय 2: भारत में राष्ट्रवाद नोट्स । Class 10 History Chapter 2 Notes In Hindi PDF

प्रजातियों का वर्गीकरण

अंतरराष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (IUCN) के अनुसार, भारत में विभिन्न प्रकार के जीवों को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:

1. सामान्य जातियाँ: इस श्रेणी में वह जीव शामिल होते हैं, जिनकी संख्या सामान्य मानी जाती है। इसमें पशु, साल, चीढ़ और कृन्तक (रोडेंट्स) जैसी जातियाँ शामिल होती हैं। इन जातियों का खतरा लुप्त होने का नहीं होता है।

2. लुप्त जातियाँ: इस श्रेणी में वह जीव होते हैं, जिनके आवासों में खोज करने पर उन्हें अनुपस्थित पाया जाता है। उदाहरण के रूप में एशियाई चीता और गुलाबी सिटवाली जैसी जातियाँ शामिल होती हैं।

3. सुभेद जातियाँ: इस श्रेणी में वह जीव होते हैं, जिनकी संख्या बढ़ी हुई होती है। यदि इन जातियों की संख्या पर विपरीत प्रभाव डालने वाली परिस्थितियाँ नहीं बदलती हैं और उनकी संख्या घटती रहती है, तो इन्हें संकटग्रस्त जातियों की रेणी में शामिल किया जाता है। इस श्रेणी में नीली भेड़, एशियाई हाथी, गंगा नदी आदि जैसी जातियाँ शामिल होती हैं।

4. संकटग्रस्त जातियाँ: इस श्रेणी में वह जीव होते हैं, जिनके लुप्त होने का खतरा होता है। इन जातियों की संख्या कम हो जाती है और यदि उन्हें विपरीत प्रभाव नहीं मिलता है, तो उनका जीवित रहना कठिन हो जाता है। इस श्रेणी में काला हिरण, मगरमच्छ, संगाई जैसी जातियाँ शामिल होती हैं।

5. दुर्लभ जातियाँ: इस श्रेणी में उन जातियों को सम्मिलित किया जाता है, जिनकी संख्या बहुत कम या सुभेद्य होती है। यदि इन जातियों को प्रभावित करने वाली विषम परिस्थितियाँ नहीं बदलती हैं, तो यह संकटग्रस्त जातियों की श्रेणी में आ सकती हैं।

6. स्थानिक जातियाँ: यह श्रेणी उन जातियों को सम्मिलित करती है, जो विशेष क्षेत्रों में प्राकृतिक या भौगोलिक सीमाओं से अलग होती हैं। इसमें निकोबारी कबूतर, अंडमानी जंगली सुअर और अरुणाचल के मिथुन जैसी जातियाँ शामिल होती हैं। ये भी पढ़ें: कक्षा 10 भूगोल अध्याय 1: संसाधन एवं विकास नोट्स । Class 10 Geography Chapter 1 Notes in Hindi Pdf

वनस्पतिजात और प्राणिजात के हास के कारण

कृषि में विस्तार: भारतीय वन सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, 1951 से 1980 के बीच कृषि भूमि के लिए 262,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक के वन क्षेत्रों को खत्म कर दिया गया। इसमें अधिकांश जनजातीय क्षेत्रों, विशेष रूप से पूर्वोत्तर और मध्य भारत में स्थानांतरी (झूम) खेती या ‘स्लैश और बर्न’ खेती के कारण वनों को काट या कम किया गया है।

संवर्धन वृक्षारोपण: जब व्यावसायिक महत्व वाली किसी वनस्पति की प्रजाति के पेड़ों को लगाने का कार्य किया जाता है, तो उसे संवर्धन वृक्षारोपण कहा जाता है। भारत के कई इलाकों में संवर्धन वृक्षारोपण किया गया है ताकि कुछ चुनिंदा प्रजातियों को प्रोत्साहित किया जा सके। इसके परिणामस्वरूप, अन्य प्रजातियों का संकट हुआ है।

विकास परियोजनाएं: स्वतंत्रता के बाद से बड़े पैमाने पर कई विकास परियोजनाओं को शुरू किया गया है। इससे जंगलों को भारी क्षति हुई है। 1952 से अब तक, नदी घाटी परियोजनाओं के कारण 5,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक के वनों का हटावा हो चुका है।

खनन: खनन के कारण कई क्षेत्रों में जैविक विविधता को भारी नुकसान पहुंचा है। उदाहरण के रूप में, पश्चिम बंगाल के बक्सा टाइगर रिजर्व में डोलोमाइट का खनन हो रहा है

संसाधनों का असमान वितरण: संसाधनों का असमान वितरण अमीर और गरीबों के बीच होता है। इससे अमीर लोग संसाधनों का उपयोग करते हैं और पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुंचाते हैं

हिमालयी चीड़: हिमालयी चीड़ (हिमालयी यव) एक औषधीय पौधा है जो हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में पाया जाता

*उपयोग

  • इस पेड़ की छाल, पत्तियां, टहनियां और जड़ों से टसोल नामक रसायन निकाली जाती है।
  • इसका प्रयोग कैंसर रोगों के उपचार में किया जाता है

*नुकसान

हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में हजारों हिमालयी चीड़ के पेड़ों का सूख जाना शुरू हो गया है।

कम होते संसाधनों के सामाजिक प्रभाव

  • संसाधनों की कमी से समाज पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इसमें कुछ चीजें हैं जो इकट्ठा करने के लिए महिलाओं के ऊपर ज्यादा दबाव पड़ता है। जैसे ईंधन, चारा, पेयजल और अन्य मूलभूत चीजें।
  • यदि इन संसाधनों की कमी होती है, तो महिलाओं को अधिक काम करना पड़ता है। कुछ गाँवों में पानी पीने के लिए महिलाओं को कई किलोमीटर चलकर जाना पड़ता है। 
  • वनों के काटने से बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ जाती हैं, जिससे गरीबों को बहुत कठिनाईयाँ होती हैं।

भारतीय वन्यजीवन (संरक्षण) अधिनियम 1972

1960 और 1970 के दशकों में पर्यावरण संरक्षकों ने वन्य जीवन की सुरक्षा के लिए नए कानून की मांग की थी। उनकी मांगों को मानते हुए सरकार ने भारतीय वन्य जीवन (रक्षण) अधिनियम 1972 को लागू किया। 

उद्देश्य

  • इस अधिनियम के तहत, हमने एक सूची बनाई है जिसमें भारत की संरक्षित प्रजातियां हैं। यह सूची उन प्रजातियों को सुरक्षित रखने के लिए बनाई गई है जो खतरे में हैं।
  • हमने वन्यजीवन के व्यापार पर रोक लगा दी है। अब वन्यजीवन के व्यापार को नहीं किया जा सकेगा।
  • हमने वन्यजीवन के आवास को कानूनी सुरक्षा दी है। इसका मतलब है कि वन्यजीवन के स्थानों को अब कोई नहीं नष्ट कर सकेगा।
  • कई केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों ने राष्ट्रीय उद्यान और वन्य जीव पशुविहार स्थापित किए हैं। इसका मकसद है कि हम वन्यजीवन के संरक्षण के लिए स्थान बना सकें और उन्हें सुरक्षित रख सकें।
  • कुछ खास जानवरों की सुरक्षा के लिए कई प्रोजेक्ट शुरू किए गए हैं, जैसे प्रोजेक्ट टाइगर। इसका मकसद है कि हम विशेष जानवरों की संख्या को बढ़ा सकें और उन्हें सुरक्षित रख सकें।

संरक्षण के लाभ

  • यह हमारे जीवन के लिए महत्वपूर्ण मूलभूत चीजों के संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण की विविधता को भी बचाया जा सकता है। 
  • संरक्षण के माध्यम से हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि जल, हवा, और मिट्टी जैसी महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन सुरक्षित रहें।
  •  इसके अलावा, संरक्षण से हमारी सामाजिक, मानसिक, और आर्थिक स्थिति में भी सुधार हो सकता है।

वन विभाग द्वारा वनों का वर्गीकरण

आरक्षित वन: देश में आधे से अधिक वन क्षेत्र आरक्षित वन के रूप में घोषित किए गए हैं। वन और वन्य प्राणियों की सुरक्षा के मामले में, आरक्षित वन सबसे महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

रक्षित वन: वन विभाग के अनुसार, देश के कुल वन क्षेत्र का एक तिहाई हिस्सा रक्षित है। इन वनों की सुरक्षा इसलिए की जाती है कि वनों के और नष्ट होने से बचाया जा सके।

अवर्गीकृत वन: अन्य प्रकार के वन और बंजर भूमि जो सरकार, व्यक्तियों और समुदायों के स्वामित्व में होते हैं, उन्हें अवर्गीकृत वन कहा जाता है।

वन्य जीवन को होने वाले अविवेकी हास पर नियंत्रण के उपाय

  • सरकार द्वारा प्रभावी, वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम।
  • भारत सरकार ने लगभग 14 जैव निचय (जैव संरक्षण स्थल) प्राणि जातियों और पौधों के लिए बनाए हैं।
  • 1992 से भारत सरकार ने कई वनस्पति उद्यानों को वित्तीय और तकनीकी सहायता दी है।
  • बाघ परियोजना, गैंडा परियोजना, ग्रेट इंडियन बर्स्टड परियोजना और कई अन्य पर्यावरणीय (पर्यावरण के विकास संबंधी) परियोजनाएं शुरू की गई हैं।
  • 89 राष्ट्रीय उद्यान, 490 वन्य जीव अभयारण्य और प्राणी उद्यान बनाए गए हैं। इन सभी के अलावा हम सभी को हमारे प्राकृतिक पर्यावरण की महत्त्वपूर्णता को हमारी प्राणजीविता के लिए समझना बहुत जरूरी है।

चिपको आन्दोलन

यह एक पर्यावरण संरक्षण आंदोलन था जो उत्तराखंड राज्य में हुआ था। इस आंदोलन में किसानों ने वृक्षों के कटाई के खिलाफ विरोध किया था। यह आंदोलन 1970 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में शुरू हुआ था।

प्रोजेक्ट टाइगर 

1973 में बाघों को विलुप्त होने से बचाने के लिए ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ नामक एक पहल शुरू की गई थी। 20वीं सदी की शुरुआत में बाघों की कुल आबादी 55,000 थी, लेकिन 1973 में यह संख्या कम होकर 1,827 हो गई।

बाघ की आबादी के लिए खतरे 

  • व्यापार के लिए शिकार
  • सिमटता आवास
  • भोजन के लिए आवश्यक जंगली उपजातियों की घटती संख्या, आदि।

भारत के प्रमुख टाइगर रिजर्व

भारत में बाघ संरक्षण के प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:

1. उत्तराखण्ड में कॉरबेट राष्ट्रीय उद्यान: यह उद्यान बाघों की संरक्षा का एक प्रमुख केंद्र है और यहाँ पर्यटकों को बाघों के पास जाने और उन्हें देखने का एक अद्वितीय अवसर प्रदान करता है।

2. पश्चिम बंगाल में सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान: सुंदरबन बाघों के लिए मशहूर है और यह वन्य जीवों की संरक्षा का घर है, जहाँ बाघ अपनी प्राकृतिक वातावरण में रहते हैं।

3. मध्य प्रदेश में बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान: इस उद्यान में बाघों की संरक्षा के लिए कई प्रयास किए जाते हैं और यहाँ पर्यटकों को बाघों के पास जाने और उन्हें देखने का मौका मिलता है।

4. राजस्थान सरिस्का वन्य जीव पशुविहार: यह वन्य जीव पशुओं की संरक्षा का एक प्रमुख केंद्र है, जहाँ बाघों की संख्या बढ़ाने और उनके प्राकृतिक आवास की सुरक्षा करने के लिए कई उपाय अपनाए जाते हैं।

5. असम में मानस बाघ रिजर्व: मानस बाघ रिजर्व असम में स्थित है और यहाँ पर्यटकों को बाघों के करीब आने और उन्हें देखने का अवसर प्रदान किया जाता है। यह रिजर्व बाघों के जीवन धारणा को सुरक्षित रखने के लिए संरक्षण के कई प्रयास करता है।

6. केरल में पेरियार बाघ रिजर्व: पेरियार बाघ रिजर्व केरल में स्थित है और यह बाघों की संरक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र है। यहाँ पर्यटकों को बाघों के नजदीक जाने और उन्हें देखने का एक अवसर मिलता है।

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