कक्षा 10 के अध्याय 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्र (Class 10 Economics Chapter 2) में आपका स्वागत हैं। यह अध्याय आपको भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के बारे में जानकारी प्रदान करता है। आज हम आपके लिए कक्षा 10 अध्याय 2: भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्र नोट्स (Class 10 Economics Chapter 2 Notes) लेकर आए हैं। यह नोट्स आपके एग्जाम के लिए काफी फायदेमंद साबित होंगे।

कक्षा 10 अर्थशास्त्र अध्याय 2: भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्र नोट्स
भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक
* आर्थिक गतिविधि
• आर्थिक गतिविधि के तहत वे क्रियाकलाप आते हैं जिनसे लोग अपने जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लिए आय बना सकते हैं।
अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक
किसी भी अर्थव्यवस्था को तीन क्षेत्रक या सेक्टर में बाँटा जाता है:-
- प्राथमिक क्षेत्रक
- द्वितीयक क्षेत्रक
- तृतीयक क्षेत्रक
प्राथमिक क्षेत्रक
प्राथमिक क्षेत्रक के अंतर्गत हम उन क्षेत्रों को समझते हैं जहां प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके वस्तुओं का निर्माण किया जाता है, जैसे – कृषि और मत्स्य पालन।
द्वितीयक क्षेत्रक
द्वितीयक क्षेत्रक के अंतर्गत हम वह क्षेत्र समझते हैं जहां प्राथमिक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित वस्तुओं का उपयोग करके नई वस्तुओं का निर्माण किया जाता है, और इसे औद्योगिक क्षेत्रक भी कहा जाता है।
तृतीयक क्षेत्रक
तृतीयक क्षेत्रक के अंतर्गत हम उन क्षेत्रों को समझते हैं जो प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक की उत्पादन गतिविधियों में सहायता करते हैं, और इसे सेवा क्षेत्रक भी कहा जाता है। उदाहरण – बैंकिंग, परिवहन आदि।
तीनों आर्थिक क्षेत्रकों में ऐतिहासिक बदलाव
1972 के बाद, जब भारत में स्वतंत्रता मिली, उस समय भारतीय जीडीपी में प्राथमिक क्षेत्र मुख्य था।
जब भूमि कृषि के तरीकों में सुधार हुआ और खाद्य उत्पादन बढ़ा, तो लोगों ने अपनी ऊर्जा को उत्पादन की ओर दिशा दी। धीरे-धीरे, द्वितीयक क्षेत्र मुख्यता प्राप्त कर लिया।
प्राकृतिक और द्वितीयक क्षेत्र के विकास के कारण, सूचना और प्रौद्योगिकी, व्यापार, परिवहन आदि, तृतीयक क्षेत्र मुख्यता प्राप्त किया।
2011-2012 में, भारतीय जीडीपी में तृतीयक क्षेत्र का हिस्सा लगभग 60 प्रतिशत है।
* सकल घरेलू उत्पादक:-
सकल घरेलू उत्पादक का अर्थ होता है कि किसी विशेष वर्ष में देश में प्रत्येक क्षेत्र से उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की कुल मूल्यांकन जानकारी देता है। इन क्षेत्रों के उत्पादों का योगफल, देश के कुल घरेलू उत्पादक कहलाता है।
दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न होती है जब राष्ट्रीय आय की गणना के लिए सभी उत्पादों की मूल्यांकन की जाती है, जिसमें कच्चे माल की मूल्यांकन भी शामिल होती है। इसलिए, समस्या का समाधान केवल अंतिम उत्पाद की मूल्यांकन करने से हो सकता है।
भारत में तृतीयक क्षेत्रक सबसे महत्वपूर्ण होने का कारण
- यह लोगों को बुनियादी सेवाएं प्रदान करता है। जैसे कि अस्पताल, पोस्ट ऑफिस, टेलीग्राफ इत्यादि।
- कृषि और उद्योग के विकास के लिए परिवहन और व्यापार जैसी गतिविधियां महत्वपूर्ण हैं।
- लोगों की आय स्तर में वृद्धि के साथ, लोगों की आवश्यकता या मांग में अधिक सेवाओं की वृद्धि हुई है।
- आधारित नई सूचना और संचार पर आधारित नई सेवाएं आवश्यक हो गई हैं।
इसके साथ ही, यह बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्रदान करता है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि जब लोगों को अधिक रोजगार का मौका मिलता है, तो उनकी आर्थिक स्थिति सुधरती है और वे और उनके परिवार के लिए अधिक सुविधाएं हासिल कर सकते हैं।
प्राथमिक, द्वितीयक, और तृतीयक क्षेत्रों के बीच एक दूसरे पर निर्भरता होने के कारण:
• प्राथमिक क्षेत्र को उत्पादन बढ़ाने और वितरण करने के लिए नई तकनीकों और परिवहन की आवश्यकता होती है।
• विनिर्माण उद्योगों के लिए कच्चा माल प्राथमिक क्षेत्र से ही प्राप्त होता है।
• प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रों की सहायता से ही सेवा क्षेत्र में नए रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं। जैसे कि भंडारण, बैंकिंग, यातायात आदि।
तीनों क्षेत्रों में परस्पर निर्भरता होती है, और किसी एक की अनुपस्थिति से दूसरे दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
बेरोजगारी की समस्या
• प्रच्छन्न बेरोज़गारी :- (छिपी हुई बेरोजगारी) की समस्या उठती है जब लोग प्रत्यक्ष रूप से काम कर रहे होते हैं, लेकिन वास्तविकता में बेरोज़गार होते हैं, यानी एक ही काम में ज्यादा लोग लगे होते हैं।
• तृतीयक क्षेत्र में अल्प बेरोजगारी की समस्या अधिक होती है, अर्थात् यदि हम कुछ लोगों को कृषि क्षेत्र से हटा भी देते हैं तो उत्पादन में विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा। ये भी पढ़ें: कक्षा 10 भूगोल अध्याय 1: संसाधन एवं विकास नोट्स । Class 10 Geography Chapter 1 Notes in Hindi Pdf
अतिरिक्त रोजगार का सृजन करने के उपाय
अतिरिक्त रोजगार का सृजन करने के उपाय छोटी अवधि और दीर्घकालीन दो तरीकों से किए जा सकते हैं।
छोटी अवधि के लिए उपाय:
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार योजना 2005 जैसी योजनाएँ।
- इस योजना के अंतर्गत, 100 दिनों के रोजगार की गारंटी दी जाती है और यदि रोजगार नहीं मिलता है, तो बेरोज़गारी भत्ता प्रदान किया जाता है।
- यह काम गांव या आस-पास के क्षेत्रों में ही करना होता है और महिलाओं के लिए भी सुरक्षित रोजगार की व्यवस्था की जाती है।
- इस योजना के तहत गरीबों और अति गरीब लोगों को भी रोजगार प्रदान किया जाता है।
दीर्घकालीन उपाय:
- कृषि सुविधाओं में सुधार करना। इसके तहत कृषि बाजार, खेती की तकनीकें और बीज वितरण में सुधार किया जा सकता है।
- सस्ती दर पर कृषि ऋण प्रदान करना। किसानों को सस्ते ब्याज दर पर ऋण देने के माध्यम से उनकी कृषि गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- अर्ध-ग्रमीण क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना करना। अर्ध-ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों को स्थापित करके नए रोज़गार के अवसर प्रदान किए जा सकते हैं।
- विद्यालय और कॉलेजों की स्थापना करना। शिक्षा संस्थानों को स्थापित करके लोगों को शिक्षा और विद्या के क्षेत्र में रोजगार के अवसर प्रदान किए जा सकते हैं
- स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाना। अधिक स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करके चिकित्सा क्षेत्र में नए रोज़गार के अवसर बढ़ाए जा सकते हैं।।
* शिक्षित बेरोजगारी
शिक्षित बेरोजगारी का मतलब होता है जब शिक्षित और प्रशिक्षित व्यक्तियों को उनकी क्षमता और योग्यता के अनुसार काम नहीं मिलता है। यह एक समस्या है जहां लोगों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ता है, भले ही उनके पास शिक्षा और प्रशिक्षण हो।
* ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम
भारत सरकार ने ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 (मनरेगा-2005) को लागू किया है, जिसके तहत भारत के 200 जिलों में काम का अधिकार दिया जाता है। इस अधिनियम के तहत ग्रामीण क्षेत्रों के क्षमता और जरूरतमंद बेरोज़गार लोगों को साल में 100 दिन के रोज़गार की गारंटी सरकार द्वारा दी जाती है। अगर उन्हें काम नहीं मिलता है तो उन्हें बेरोज़गारी भत्ता दिया जाता है। यह अधिनियम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम 2005 के नाम से जाना जाता है।
* काम का अधिकार अधिनियम
काम का अधिकार अधिनियम द्वारा सक्षम और जरूरतमंद ग्रामीण बेरोज़गार लोगों को अवसर मिलता है ताकि वे हर साल 100 दिन के रोज़गार कर सकें। यदि उन्हें रोज़गार नहीं मिलता है, तो सरकार उन्हें बेरोज़गारी भत्ता प्रदान करती है। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करना है और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 इसके लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी की समस्या को कम किया जा सकता है और लोगों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में मदद मिल सकती है। ये भी पढ़ें: कक्षा 10 इतिहास अध्याय 1: यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय । Class 10th History Chapter 1 Notes PDF in Hindi
राष्ट्रीय रोज़गार गारन्टी अधिनियम के प्रावधान
राष्ट्रीय रोजगार गारन्टी अधिनियम के अंतर्गत निम्न प्रावधान हैं:
- यह अधिनियम 100 दिनों के रोज़गार की गारन्टी प्रदान करता है। यानी, यदि कोई व्यक्ति 100 दिनों तक रोज़गार नहीं पा सकता है, तो उसे बेरोज़गारी भत्ता दिया जाता है।
- यह योजना केवल व्यक्ति के गाँव या नजदीकी क्षेत्रों में ही काम स्थान प्रदान करती है।
- महिलाओं के लिए यह योजना सुरक्षित रोज़गार प्रदान करती है, और इसके अंतर्गत एक तिहाई रोज़गार महिलाओं को ही सुरक्षित रूप से उपलब्ध होता है।
- इस योजना के तहत अति गरीब लोगों को भी रोज़गार प्रदान किया जाता है, जो गरीबी की सबसे बड़ी आवश्यकताओं के अंतर्गत आते हैं।
- यह योजना गरीब और बेरोज़गार लोगों के लिए महत्वपूर्ण है और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में मदद कर सकती है।
संगठित क्षेत्रक
इस योजना में लोगों को उद्यम या कार्यों में मौजूद होने का मौका मिलता है, जहां रोज़गार की अवधि निश्चित होती है। ये उद्यम सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं और निर्धारित नियमों और विनियमों का पालन करते हैं।
संगठित क्षेत्र के कर्मचारी को प्राप्त लाभ
- काम के निश्चित घंटों की अवधि होगी।
- यदि काम के समय से अधिक काम किया जाता है, तो अतिरिक्त आय प्राप्त होगी।
- चिकित्सा सुविधाएं और पेंशन की सुविधा मिलेगी।
- सवेतन अवकाश और भविष्य निधि का सेवानुदान मिलेगा।
- कार्यस्थल पर उचित वातावरण और न्यूनतम सुविधाएं होंगी। शोषण नहीं होगा।
इस योजना के तहत कर्मचारियों को विभिन्न लाभ प्रदान किए जाते हैं जो उनके जीवन को सुखद और सुरक्षित बनाने में मदद करते हैं।
असंगठित क्षेत्रक
छोटी-छोटी और बिखरी हुई ईकाइयाँ जो अधिकांशतः नियंत्रण से बाहर रहती हैं, उनसे निर्मित होता है। यहाँ प्रायः सरकारी नियमों का पालन नहीं किया जाता।
असंगठित क्षेत्र में मजदूरों के सामने आने वाली कठिनाइयाँ हैं:
- यह क्षेत्र सरकारी नियमों और विनियमों का पालन नहीं करता है।
- मजदूरों को केवल न्यूनतम वेतन ही मिलता है।
- रोजगार की अवधि और कार्य समय सीमा निश्चित नहीं होती है।
- किसी भी प्रकार की छुट्टी या लाभ का प्रावधान नहीं होता।
- निश्चित कार्य क्षेत्र त्र और अच्छी सेवा सुविधाएं नहीं होतीं।
संगठित और असंगठित क्षेत्रों में रोजगार की परिस्थितियों में अंतर
- यह क्षेत्र सरकारी नियमों और विनियमों का पालन नहीं करता है।
- मजदूरों को केवल न्यूनतम वेतन ही मिलता है।
- रोज़गार की अवधि और कार्य समय सीमा निश्चित नहीं होती है।
- किसी भी प्रकार की छुट्टी या लाभ का प्रावधान नहीं होता।
- निश्चित कार्य क्षेत्र और अच्छी सेवा सुविधाएं उपलब्ध नहीं होतीं।
यहां सामान्यतः असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए रोजगार की स्थिति संगठित क्षेत्र के मजदूरों के मुकाबले अधिक कठिन होती है। असंगठित क्षेत्र में कानूनी सुरक्षा और लाभों की कमी होती है जबकि संगठित क्षेत्र में यह लाभ सुपुर्दगी से मिलता है। राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम इसी समस्या का समाधान करने का प्रयास करता है जिससे सभी कार्यकर्ताओं को समान और न्यायसंगत रोजगार की सुरक्षा मिल सके।
भारत में कृषि के असंगठित क्षेत्रक में होने के कारण
पर्याप्त कानूनी सुरक्षा और लाभ सुविधाएं न होने के कारण कृषि क्षेत्र असंगठित है। कृषि मजदूरों को उचित मानवाधिकारों और रोजगार सुरक्षा के लिए समान और न्यायसंगत पहचान प्राप्त करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- कृषि मजदूरों के काम के घंटे निश्चित नहीं होते हैं।
- वे अतिरिक्त वेतन के बिना काम करने के लिए मजबूर होते हैं।
- कृषि मजदूरों को दैनिक मजदूरी के अलावा कोई अन्य सुविधाएं नहीं मिलतीं।
- उनकी रोजगार सुरक्षा नहीं होती है।
- मजदूरों की सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
- इस क्षेत्र में नियम और विनियमों का अनुपालन नहीं होता है।
संरक्षण की आवश्यकता वाले लोग:
* असंगठित क्षेत्र: जिनमें शामिल हैं भूमिहीन किसान, कृषि श्रमिक, छोटे और सीमांत किसान, काश्तकार, बाँटनेवाले, शिल्पी, आदि।
* शहरी क्षेत्र: औद्योगिक श्रमिक, निर्माण श्रमिक, व्यापार और परिवहन में काम करने वाले, कबाड़ और भार उठाने वाले लोगों को संरक्षण की आवश्यकता होती है।
सार्वजनिक क्षेत्र: जहां अधिकांश संपत्ति सरकार की होती है और सरकार ही सभी सेवाओं को प्रदान करती है।
निजी क्षेत्र: जहां संपत्ति का स्वामित्व और सेवाओं का वितरण एक व्यक्ति या कंपनी के हाथ में होता है।
सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच का अंतर
सार्वजनिक क्षेत्र:
- सरकार द्वारा परिसम्पत्तियों का नियंत्रण होता है।
- सभी सेवाएँ सरकार द्वारा प्रदान की जाती हैं।
- इसका मुख्य उद्देश्य सामाजिक कल्याण होता है।
- यहाँ रोजगार सुरक्षा दी जाती है।
- सवैतनिक छुट्टी और अन्य सेवाएँ उपलब्ध होती हैं।
निजी क्षेत्र:
- परिसम्पत्तियों पर निजी स्वामित्त्व होता है।
- सभी चीजें एक व्यक्ति या कंपनी द्वारा प्रदान की जाती हैं।
- इसका मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है।
- यहाँ रोजगार और श्रमिकों की सुरक्षा कम होती है।
- सवैतनिक छुट्टी और अन्य सेवाएँ आमतौर पर नहीं दी जाती हैं।
सार्वजनिक क्षेत्रक का राष्ट्र के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका
सार्वजनिक क्षेत्रक राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है:
• यहाँ ढाँचागत सुविधाएँ, कृषि और उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाता है।
• इसके द्वारा लोगों को सुविधाएं कम मूल्य पर प्राप्त होती हैं।
• सरकार द्वारा आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन और विक्रय में सहायता और अनुदान प्रदान किया जाता है।
• यहाँ मुख्यतः सामाजिक कल्याण के लक्ष्य के साथ योजनाएं बनाई जाती हैं।
• श्रमिकों को अच्छी कार्य सुविधाएं, वेतन आदि प्रदान किए जाते हैं।
तेजी से बढ़ती जनसंख्या किस प्रकार बेरोज़गारी को प्रभावित करती है?
- रोज़गार के अवसर, जनसंख्या के अनुपात
- कृषि और शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या बढ़ जाती है।
- संसाधनों का दबाव बढ़ता है।
- अधिक लोग उपलब्ध होने से रोज़गार से प्राप्त आय कम हो जाती है।
- वस्तुओं और सेवाओं की कीमत बढ़ती है और उनकी उपलब्धता कम हो जाती है।
शहरी क्षेत्रों में रोजगार पैदा करने की विधियाँ
- क्षेत्रीय शिल्प उद्योग और सेवाओं को प्रोत्साहित करना।
- पर्यटन उद्योग को समर्थन देना।
- अनावश्यक सरकारी नीतियों और नियमों में परिवर्तन करना।
- मूलभूत सुविधाओं और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना।
- आसान शर्तों पर ऋण या आर्थिक सहायता प्रदान करना।
कृषि क्षेत्रक की प्रमुख समस्याएँ
1. असिंचित भूमि: बारिश की कमी के कारण पानी की कमी होना।
2. आय में उतार-चढ़ाव: कृषि उत्पादों की कीमतों में उतार-चढ़ाव होना।
3. कर्ज का बोझ: किसानों को ऋण की बढ़ती बोझले चुकना।
4. मौसम के बाद या पहले रोज़गार की कमी: खेती के मौसम के अनुसार अस्थायी रोज़गार की कमी होना।
5. कृषक कटाई के तुरंत बाद अनाज बेचने के लिए मजबूर होना।
कृषि में अधिक रोज़गार पैदा करने के उपाय
1. किसानों को कृषि उपकरण खरीदने के लिए ऋण प्रदान किया जा सकता है।
2. सूखे क्षेत्रों में सिंचाई के लिए बांध बनाए जा सकते हैं।
3. बीज और उर्वरकों पर सब्सिडी दी जा सकती है।
4. भंडारण की सुविधा प्रदान की जा सकती है।
5. परिवहन सुविधाओं को बढ़ाया जा सकता है।